Book Title: Chikitsa Kalika
Author(s): Narendranath Mtra
Publisher: Mitra Ayurvedic Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 238
________________ २२५ वातरोगचिकित्सा। २२५ बस्तिः सक्षीरमूत्रः सतुषजलघृतक्षौद्रतैलः समस्तु गुल्फस्फिक्जानुजङ्घाजघनभुजकटीपृष्ठकोष्ठानिलनः ॥३३६ ॥ ___ रास्नादीनि पलिकानि गृहीत्वा मांसपलानि षोडश जलाढकद्वये निःक्वाथ्याष्टभागावशेषः क्वाथो ग्राह्यः उग्रादिभिश्च पलिकैः कल्कः । उग्रा वचा । अब्दं मुस्तम् । कृष्णा पिप्पली। मिशिः शतपुष्पा । फलं मदनफलम् । फलिनी प्रियङ्गुः । कुष्ठं रुक् । सिन्धूत्थं सैन्धवम् । क्षीरादिसंयुक्तो बस्तिर्गुल्फाद्यनिलघ्नः । बस्तिकल्पना च पूर्व व्याख्याता ॥३३६॥ रास्नादिबस्ति–क्वाथार्थ–रास्ना, दशमूल, मैनफल, बला, हरड़, बहेड़ा, आंवला; प्रत्येक १ पल, बकरे का मांस १६ पल; जल ४ आढक, अवशिष्ट क्वाथ आधा आढक (३२ पल)। कल्क-वचा, मोथा, पिप्पली, सोये, मैनफल, प्रियंगु, कुठ; प्रत्येक लगभग १ पल ( अथवा मिलित ६ पल)। सैन्धानमक २ तोले । मधु १२ पल । घी और तिलतैल मिलित १२ पल । आवापार्थ-दूध, गोमूत्र, कांजी, मस्तु प्रत्येक ३ पल । प्रथम सैन्धानमक को मधु में अच्छी प्रकार घोटकर मिलावें । तदनन्तर घी और तैल डालकर मन्थन करें । जब ये एक समान सर्वत्र मिश्रित होजाय तब अत्यन्त लक्षण चूर्णित कल्कद्रव्य डालें । इसे भी अच्छी प्रकार मिलाकर क्वाथ और तदनन्तर आवाप दें। इसे यथानियम प्रयुक्त करने से गुल्फ (टखना), स्फिक्, जानु (गोडे ), जंघा, जघनस्थल, बाहू, कमर, पीठ तथा कोष्ठगत वात नष्ट होती है । उपयुक्त मान तीन वार बस्तिकर्म करने के लिये हैं। एक बस्ति में तृतीयांश दिया जाता है ॥ ३३६॥ पूर्व शतावरीतैलं प्रयोज्यमित्युक्तं तत्प्रतिपादनायाहमञ्जिष्ठासुरकाष्ठकुष्ठकुटिलैरेलालवङ्गागुरुत्वपत्र खनागपुष्पफलिनीकौन्तीवचाचन्दनः । मांसीसर्जरसाम्बुभिः ससरलैः सोशीरशैलेयकैरित्येभिः सवरीरसेन पयसा तैलं शृतं वातजित् ।। ३३७ ।। इत्येभिर्मञ्जिष्ठादिभिः कल्कैः पयसा दुग्धेन । वरी शतावरी तस्याः स्वरसेन तैलं शृतं वातजित् भवतीति। सुरकाष्ठं देवदारु । कुटिलं तगरम् । कौंती रेणुका । सर्जरसो राला । अम्बु वालकम् । शेषाणि प्रसिद्धानि । इति ॥ ३३७॥ शतावरीतैल-तिलतैल २ प्रस्थ । शतावर का रस ८ प्रस्थ । दूध २ प्रस्थ । कल्कार्थ-मंजिष्ठा देवदारु, कुष्ट, तगर, छोटी इलायची, लौंग, अगर दारचीनी,

Loading...

Page Navigation
1 ... 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274