Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 13
________________ ग्रन्थ के सम्बन्ध में ] [ ६ संगम परिलक्षित होता है। जैसे प्राध्यात्मिक चर्चा करते हुए उन्होंने प्रष्टसहस्री एवं प्राप्तमीमांसा के उद्धरण भी प्रस्तुत किये हैं। ग्रन्थ में समागत कतिपय महत्त्वपूर्ण वाक्य-उपवाक्य निम्नप्रकार हैं। यद्यपि इनका पूर्णतः ग्रानन्द पूरे प्रसंग के साथ पड़ने पर ही पायेगा, फिर भी किञ्चित् रसास्वाद कराने की दृष्टि से उन्हें ग्रन्थ की मूल भाषा में ही अविकलरूप से दे रहे हैं :-. . (१) यह द्रव्य का सत्स्वभाव अनादिनिधन है, द्रव्य-गुण । अन्वयशक्तिकौं लियें हैं, सो पाँव क्रमवर्ती सों व्याप्त हुना भी द्रव्याथिकानय करि अपने वस्तु सत्करि जैसा है तैसा उपज है । पर्याय की अपेक्षा करि उपजना ऐसा है, पर अन्वयी शक्ति में जंसा का तसा है तो भी ल्याया है । पर्याय शक्ति में असत्-उत्पाद.बताया है. (सो) पर्याय और और उपजें हैं। तातें कहा है, पर अन्वयो शक्तिसौं व्याप्त है। पर्यायाथिकानयकरि है। (२) पर्याय द्रव्यको कारण, द्रव्य पर्यायको कारण, यह तौ कारणरूप है। पर पर्याय का कार्य पर्यायहीतर, है। द्रव्य का कार्य द्रव्य होलब है। (३) जसे एक नर के अनेक अंग हैं, एक अंग में नर नाही, सन अंगरूप नर है। तैसें द्रक्ष्यरूप, गुणरूप, पर्यायरूप जीव नाही, जीववस्तु द्रव्य-गुण-पर्याय का एकत्व है, एक अंग में जीन होय ती ज्ञानजीव, दर्शनजीव, अनंतगुण यों अनंतजीव होय, तातें अनंतगुण काज जोषवस्तु है।' (४) द्रव्यकरि गुण-पर्याय हैं, गुण-पर्यायकरि द्रव्य है, द्रव्य गुणी है, गुण गुण है, गुणीत गुण की सिद्धि है, गुणत गुणी की सिद्धि है। 1. इसी पुस्तक में पृष्ठ ५७ पर इसका अनुवादित अंश देखें। 2. इसी पुस्तक में पृष्ठ ५८ पर इसका अनुवादित म श देखें । ३. इसी पुस्तक में पृष्ठ ८२ पर इसका अनवाचित मश देखें। 4. इसी पुस्तक में पृष्ठ ५४ पर इसका अनुवादित अश देखें।

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