Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 12
________________ [ चिविलास (५) निश्चयनय का निरूपण तेरह प्रकार से किया गया है, जो मूलत: पठनीय है।। ग्रन्थकार की शैली है कि जब भी किसी विषय का निरूपण करते हैं, उसकी महिमा अवश्य करते हैं - इससे उस विषय के सबध में जिज्ञासाभाव उत्पन्न होता है । जैसे -- गुणों के प्रकरण में वे प्रत्येक गुण को प्रधान कहते हैं । उदाहरणार्थ :-- (१) वस्तु का निश्चयरूप अनुभव रूप सम्यक्त्व है, वही प्रधान है। . (२) दर्शनगुण प्रधान गुण है । (३) चारित्र द्वन्य का सर्वस्वगुण है । - सभी गुणों को प्रधान क्यों वाहा जाता है - इसका समाधान भी उन्होंने स्वयं ही किया है । वे कहते है : गुण अनंत हैं, सामान्य विवक्षा मैं अनंत ही प्रधान है। विशेष विवक्षा में जो गुण प्रधान कीजिये सो मुख्य है, और गुण हैं । यात मुख्यता-गौणता भेद, विधि-निषेध भेद जानिये ।" सर्वत्र षड्गुणी वृद्धि हानि के स्वरूप को केवलीगम्य कहा जाता है, लेकिन षड्गुणी वृद्धि हानि का स्वरूप क्या है, ऐसी शंका होने पर समाधान करते हुए ग्रन्थकार करते हैं:- गसिद्ध भगवान हैं तिन विर्षे षट्गुणी वृद्धि-हानि का स्वरूप कहिये है" बाद में उन्होंने षड्गुणी वृद्धि-हानि का स्वरूप विस्तार से लिखा है, जो मूलतः पठनीय हैं। आपके विश्लेषण में जैन अध्यात्म और जैन न्याय - दोनों का 1. इसी पुस्तक में पृष्ठ २७ पर इसका अनुवादित अंश देखें । 2. इसी पुस्तक में पृष्ठ ३७ पर इसका अनुवादित मश देखें । 3. इसी पुस्तक में पृष्ठ ४२ पर इसका अनुवादित प्रश देखें। 4. इसी पुस्तक में गृष्ठ २० पर इसका अनुवादित प्रशदेखें।

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