Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 10
________________ 8 ... - .. -... [ चिद्विलास आगम में गुणों को निर्गुण माना है। 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुगाः' इस सूत्र में द्रव्य कोः तो अनन्तगुणरूप स्वीकार किया है, लेकिन एक गुण को अन्य गुणस्वरूप स्वीकार नहीं किया, तथापि ग्रन्थकार कहते हैं कि एक गुण में अनन्तगणों का रूप पाता है। इस संबंध में उनका कथन दृष्टव्य है :____एक गुण में सब गुण का रूप संभव । वस्तुविर्षे अनंतगुण हैं सो एक-एक गुणन में सब गुण का रूप संभषे हैं । काहेत ? जो सत्ता गुण है तो सब गुण हैं, तातें सत्ताकरि सब गुण को सिद्धि भई । सूक्ष्म गुण है तो सब गुण सूक्ष्म हैं, तो सब सामान्य विशेषता को लिये हैं । द्रवत्वगुण है तो द्रव्य को द्रौ है, व्यापं है । अगुस्लघुत्व गुण है तो सब गुण अगुरुलघु हैं । अबाधित गुण है तो सब अबाधित गुण हैं । अमूर्तीक गुण है तो सब अमूर्तीक हैं। या प्रकार एक-एक गुण सबमें है, सबकी सिद्धि की कारण है। एक-एक गुण में द्रव्य-गुणपर्याय तीनों साधिये, एक गुण ग्यान है ताको ज्ञानरूप तौ द्रव्य है, गाको लक्षण गुण, जाकी परिणति पर्याय है। प्राकृति व्यंजन पर्याय है।" नयप्रकरण में भी नवीनता के साथ निरूपण किया गया है। सर्वत्र निश्चय-व्यबहारनय अथवा द्रव्याथिक-पर्यायाथिकनय को मूलनय कहा जाता है तथा नैगमनय का अलग से निरूपण किया जाता है, लेकिन इस ग्रन्थ में लेखक ने उन सबका समन्वय करने का प्रयत्न किया है । समन्वय करने के प्रयास में उन्होंने इन सबका अपने मौलिक क्रम में ही निरूपण किया है। उनके निरूपण का क्रम निम्न प्रकार है: १. संग्रहनय, २. नेगमनय, ३. द्रव्याथिकनय, ४. व्यवहारनय, 1. इसी पुस्तक में पृष्ठ १०१ पर इसका पनुवादित अंश देखें । -- - - -

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