Book Title: Chidvilas Author(s): Dipchand Shah Kasliwal Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust View full book textPage 9
________________ ग्रन्थ के सम्बन्ध में ] (१) जो एक को जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है। (पृष्ठ ३२-३३) (२) 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः' अर्थात् द्रव्य के प्राश्रय से गुण रहते हैं, लेकिन गुण के आश्रय से गुण नहीं रहते। . (पृष्ठ १७-१८-२२) इसीप्रकार अन्य अनेक सिद्धान्तों का इस लघु ग्रन्थ में विस्तार से निरूपण किया गया है। प्रत्येक प्रकरण को कहने की उनकी अलग पद्धति है । जैसे :(१) सप्तभङ्गी का निरूपण (पृष्ठ २२) (२) ज्ञान के सात भेद (पृष्ठ ३१-३६) (३) सामान्य-विशेषरूप वीर्यशक्ति में विशेषवीर्यशक्ति के सात भेद (पृष्ठ ८७-१००) (४) सम्यक्त्व के सड़सठ भेद (पृष्ठ ११७-१२५) (५) मन की पांच भूमिका (पृष्ठ १३४-१३५) (६) समाधि के तेरह भेद (पृष्ठ १४०-१५६) अापने सम्यक्त्व को अलग गुण माना है । वे कहते हैं कि सम्यक्त्व के अनन्त प्रकार हैं, यह प्रधान गुण है तथा सभी गुणों में सम्यक्पना इसी गुण के कारण आता है। . ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रन्थकार श्रद्धागुण को ही सम्यक्त्व नाम से कहते हैं, क्योंकि आप स्वयं लिखते हैं : 'जहाँ सम्यक् दर्शन प्राव, तहाँ सम्यक्त लेना।। ग्रन्थकार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आपने अपने प्रतिपादन में गुणों के संबंध में एक विशेष बात कही है। यद्यपि !. इसी पुस्तक में पृष्ठ २७ पर इसका अनुवादित अंश देखें।Page Navigation
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