Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 6
________________ [२] चैत्यवंदन संग्रह तिहुं कालमां तिहुं लोकमां, जेहनो विच्छेद न थाय छे, सुर असुर इन्द्र नरेन्द्र सर्वे, भावथी गुण गाय छे, जिहां प्रथम श्री जिनराज पूर्व, नवाणुं वार समोसर्या, गावो सदा गीरीराजना गुण, काज सघला तो सर्या.२ पुंडरीक प्रथमाधीश गणपति, साधता गति पंचमी, जस नामथी संकट टले ने, आपदा नासे वलो, दर्शन अने फरशन थकी, भव्यो अनंता भव तर्या, गावो सदा गीरिराजना गुण, काज सघला तो सर्या.३ विमल गीरिवर सयल अघहर, भविकजन मनरंजनो, निज रूप धारो पाप टाळी, आदि जिन मदभंजनो, जग जीव तारे भरम फारे, सयल अरिदल मंजनो, पुंडरीक गीरीवर शृंग शोभे, आदिनाथ निरंजनो.१ अज अमराचल आनंदरूपी, जन्म मरण विहंडनो, सुर असुर गावे भक्ति भावे, विमलगीरि जगमंडनो, पुंडरीक गणधर राम पांडव, आदि ते बहु मुनिवरा, जिहां मुक्ति रामा वर्या रंगे, कर्म कंटक सहु झरा.२ कोई तीर्थ जगमां अन्य नाही, विमलगीरि सम तारकं, दूरभव्य ने अभव्य वली, सदा दृष्टि निवारकं, अक त्रीजे पंचमें भवे, वरे शिव दुःखवारकं, यह आश धारी शरण थारी, आव्यो आतम हितकरं.३ (४) ऋषभनी प्रतिमा मणीमयी, भरतेश्वरे कीधी, ते प्रतिमा छे इणगीरि, अह वात प्रसिद्धि...१... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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