Book Title: Chaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 11
________________ [७] तीर्थ- जिन विशेष महाबल दृढ़शक्ति सही, ओम ओकवीशे नाम, साते शुद्धि समाचारी, करीओ नित्य प्रणाम... ५... दग्ध शुन्य ने अविधि दोष, अति प्रवृत्ति जेह, चार दोष छंडी भजो, भक्ति भाव गुण गेह... ६... मनुष्य जन्म पामी करीओ, सद्गुरु तीरथ योग, श्री शुभवीरने शासने, शिवरमणी संयोग... ७... (१२) श्री सिद्धाचल सिद्धक्षेत्र, पुंडरीकगीरि कहीओ, विमलाचल ने सुरगीरि, महागीरि लहीओ...१... पुन्यराशी ने पर्वतनाथ, परवत इन्द्र होय, महातीरथ ने शाश्वतगीरि, दृढ़शक्ति जोय...२... मुक्तिनिलय ने महापद्म, पुष्पदंत वली जाणो, सुभद्र ने पृथिवीपीठ, कैलासगीरि मन आणो...३... पातालमूल पण जाणीओ, अकर्मक जेह, सर्वकाम मन पूरणो, टाळे भवदुःख रेह... ४... जात्रा नवाणुं कीजीओ, जिन उत्तम पद तेह, रूप मनोहर पामीओ, शिवलक्ष्मी गुण गेह... ५... (१३) शत्रुंजय गीरि वंदिओ, सकल तीरथ जग सार, आतम पावन कारणे, ओहिज तीर्थ निरधार... १... सिद्धगीरि सेवी शिव वस्या, महात्मा सनंतानंत, अह तीरथनी फरसना, अम होजो सुखवंत...२... तीर्थनाम यथार्थं ते, जेहथी भव तराय, विषय कषाय मूल भव तणा, तीर्थ भक्ते छेदाय...३... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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