Book Title: Bruhat Paryushananirnay
Author(s): Manisagar Maharaj
Publisher: Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शंकारूपी शल्यको एकप्रकारसे मिथ्यात्वही कहाहै, उसका निवारण करनेकेलिये और शास्त्रानुसार सत्य बातोका निर्णय बतलाने के लिये वर्तमानिक सर्व शंकाओका समाधान सहित मैन यह ग्रंथ बनायाहै, मगर मैरो तरफसे किसी तरहका नवीन विवाद शुरूकरनेकेलिये न. ही बनाया. इसलिये इस ग्रंथके बनाने में सुबोधिका, किरणावली वां चनेवाले कितनेक विद्वान् मुनि महाशयही कारणभूत है, पाठक गण इसमें मैरेको किसी तरहका दोषी न समझे, मैनें तो उन्होंकी शंका. ओंका समाधान लिखा है. ४- शुद्धश्रद्धाबिना द्रव्यसे व्यवहारमें चाहे जितनेधर्मकार्य करें, तो भी आरम कल्याण करने वाले नहीं होते, और आग्रही लोगोंकी अभी अलग २ प्ररूपणा होनेसे भोले जीवोंको जिनाशानुसार सत्य बातकी प्राप्ति होना बहुत मुश्किल होरहा है. और अविसंवादी रूप बागम-पंचांगी-प्रकरण-चरित्रादि सर्वशास्त्रोको मानने वालोंमें पर्युषणा-छ कल्याणक-सामायिकादि विषयों संबंधी शास्त्रकारमहाराजों के अभिप्रायको न समझनेसे व्यर्थही विसंवाद होरहा है, उसकानिर्णः य करनेके लिये और भव्य जीवाको शुद्धश्रद्धारूप सम्यक्त्व रत्नकी प्राप्तिके उपकारकेलिये मैने यह ग्रंथ बनायाहै । मगर किसी गच्छके साधु-श्रावकोंको किसी अन्य गच्छमें ले जाने के लिये नहीं बनाया. किसी गच्छमें रहो, परंतु आपसमें राग द्वेष निंदा ईर्षा अंगतविरो धादिक बखेडे छोडकर शुद्ध श्रद्धापूर्वक आत्मिक कल्याण करनेके लियेही इस ग्रंथकी रचना करने में आया है, इसलिये पक्षपात छोड. कर इस प्रथको यारंवार पूरेपूरावांच, विचार,मननकर सत्य समझ. करके शांति पूर्वक शुद्ध श्रद्धासहित अपना आत्मसाधन करके आस्मार्थी पाठकगण मेरे परिश्रमको सफल करेंगे. ५-जिनाशानुसार शुद्धश्रद्धापूर्वकभावसे धर्मकार्य करनेका योग महान्पुण्योदयहोव तय प्राप्तहोताहै, इसलिये उसमें लोकपूजा बहुत समुदायवैगरकी प्रवृत्तिमुजब करना योग्यनहीं है. इसकालमें आत्मा अल्पही होते हैं. कदाचित् गच्छ-गुरुपरंपरा-बहुत समुदाय वगैरह बाह्यकारणोंसे आशामुजब क्रियाकरनेका योग न बनसके तोभी शुद्धश्रद्धा-प्रकपणा तो आशामुजब सत्यबातोकीही करना योग्यहै,उससे भवांतरमे सुलभबोधिकी प्राप्ति हो सकेगी. मगर गुरु-गच्छलोकसमुदाय के आग्रहसे जिनाझा बाहिर क्रिया करतेहुए आशामुजब सत्यबातोका निषेध करनेसे भवांतरमे दुर्लभबोधिकी प्राप्ति होतीहै, For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 585