Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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तपनोष्मः
तपनोष्मः (पुं०) सूर्य की उष्णता । (वीरो० ९/३१ ) तप प्रायश्चित्त (नपुं०) बाह्य तप की क्रिया ।
तर्प (सक०) संतुष्ट करना (जयो० २/९४) तर्पयेत् प्रसादयेत् (जयो० २/९६)
तपर्तु तप (स्त्री०) तमऋतु, ग्रीष्म ऋतु, गर्मी का समय (जयो०
६/८६)
तर्पणं (नपुं०) संतुष्ट। (जयो० २/८२)
तपविनय (नपुं० ) निर्मल परिणाम विशुद्ध भावना, निराकुलतापूर्वक विनत होना।
तपस् (नपुं०) १. ताप, गर्मी, उष्णता । २. पीड़ा, कष्ट । ३. नैतिक गुण, इन्द्रिय दमन की प्रवृत्ति।
तपः पर (वि०) तप में संलग्न (वीरो० २२/९)
तपस: (पुं० ) [ तप्+असच्] १. सूर्य, रवि । २. चन्द्र, ३. पक्षी । तपसोचित (वि०) द्वादश तप की प्रधानता वाला। (जयो० १/९७) तपस्यः (पुं० ) [ तपस्+ यत्] फाल्गुन मास । तपस्या (स्त्री०) साधना, तपश्चरण (दयो० ३१) चतस्तस्य ततु सम्भवत्ताम्' (सुद० ११३)
तपस्विन् (वि०) तप करने वाला, भक्तिनिष्ठ, महोपवासानुष्ठायी,
ज्ञान-ध्यान तप रत, तप-संयम युक्त । ( मुनि० ३३) साधनारत 'तपोऽनुष्ठानं विद्यते यस्य स तपस्वी' सम्यक्त्वेन निरीहतार्चिषि तपत्येवं तपस्वी भवेत्' (मुनि० ३३) जो सम्यग्दर्शन के साथ निःस्पृहता रूपी अग्नि में तप करते हैं, वे तपस्वी हैं।
तपांसि (वि०) तपस्वी । (सम्य० ८४)
तपाचार: (पुं०) तपचश्रण का भाव। तपाराधना (स्त्री०) द्वादश तप का आचरण । तपाश्रयः (पुं०) तपाधीन ।
तपोधन: (पुं०) १. सूर्य, २. धर्माधिकारी (जयो० २८/३) तपोधनं (नपुं०) अनशनादि का मूल्य । (समु० ७/२४) (जयो०
१/७८)
तपोप्रवीणः (पुं०) तप में कुशल | तपोभाव: (पुं०) तपश्चरण का भाव।
तपोबल: (पुं०) तप की शक्ति ।
४३४
तपोमानं (नपुं०) तपश्चरण का अहंकार । तपोविद्या (स्त्री०) षष्ठ-अष्ठम उपवासादि की विद्याएं । तपोविनयः (पुं०) उत्तरगुणों के पालन में विनय । तप्त (भू०क०कृ० ) [ तप्क्त] १. तपाया गया, गरम, उष्णता युक्त, २. संतप्त, कष्ट युक्त, दुःखी, पीड़ित ।
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तमसावृत
तप्तकाञ्चनं (नपुं०) तप्प सोना, अग्नि में तपाया गया स्वर्ण तप्तकृच्छ (नपुं०) कठोर साधना ।
तप्तदेहं (नपुं०) संतप्त शरीर । तप्ततप: (पुं०) एक ऋद्धि विशेष । तप्तपादपः (पुं०) ग्लान पौधा, मुरझाया पौधा तप्तरूपकं (नपुं०) तपाई गई चांदी
।
तप्तशरीरः (पुं०) तपाया गया शरीर, क्लान्त देह |
तम् (अक० ) १. दम घुटना, श्वास करना। २. परिश्रांत होना, थक जाना। ३. दुःखी होना, पीड़ित होना ।
तमः (पुं०) दृष्टि प्रतिबन्ध कारक, प्रकाश विरोधी, अन्धकार | (सुद० २/३३) तमयति खेदयति जनलोचनानीति तमः ' 'तम्यतेऽनेन तमनमात्रं वा तमः' (त०वा० ५ / २४) तमो दृष्टिप्रतिबन्धकारणं केषांचित्। (त०वा० ५/२४) १. राहु
२. तमालतरु ।
तमं (नपुं०) १. अन्धकार, २. पैर की नोक। ध्वान्त संतमसं
तमम इति धनञ्जय (जयो० १८ / १९ )
तमस् ( नपुं० ) [ तम्+असुन्] (जयो० ११/९३) अन्धेरा, अन्धकार, प्रकाशाभाव। ध्वान्तं संतमसं तमम्' (जयो० १५/८२) १. दृष्टिप्रतिबन्धक २. राहु रोष (जयो० ४/२५) तमकाण्ड : (पुं०) गहन अन्धकार | तमकाण्डं (नपुं०) सघन अन्धकार ।
तमध्नः (पुं०) दिनकर, भानु । १. चन्द्र, २. अग्नि । ३. प्रकाश । तमज्योतिस् (पुं०) जुगनू ।
तमततिः (स्त्री०) गहन अन्धकार |
तमनुद् (पुं०) कान्तियुक्त शरीर । १. सूर्य, २. चन्द्र, ३. प्रकाश । तमनुदः (पुं०) सूर्य, भानु, प्रकाश । तममणिः (स्त्री०) जुगनू ।
तमः प्रभा ( स्त्री० ) छठे नरक का नाम । तमविकार: (पुं०) रोग, अक्षिरोग। तमस्चमूकः (पुं०) उलूक, पूक। (जयो० १८/२८) तमसः (पुं० ) [ तम् + ऊसच्] अन्धकार | तम संहारकृत् (पुं०) सूर्य (वीरो० १० / २७) तम-समारंभ: (पुं०) अन्धकार समूह (जयो० १५/ तमस्विनी (स्त्री०) [तमस्+किनि ङीप्] रजनी, रात तमिस्रा, रात्रि (जयो० १५ / ६१ )
तमसगात्री (स्त्री०) रजनी, रात्रि। (सुद० ९७)
तमसावृत (स्त्री०) १. राहु ग्रसित (जयो० ७/७३) १. कोप से युक्त
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