Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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ततांशुः
४२९
तत्त्वार्थराजवर्तिकः
ततांशुः (पुं०) विस्तृत किरण। ०प्रकाशवान किरण। तता तत्त्वभृत् (वि०) यथार्थ युक्त। 'तत्त्व विभर्ति इति तत्त्वभृद्
विस्तृता अंशवो यस्य स (जयो० १५) प्रसृत किरण। यथार्था' (जयो० २/५) ततश्च (अव्य०) तो भी। (सुद० ४/२८)
तत्त्वबुद्धिः (स्त्री०) तत्त्व ज्ञान युक्त धी होयोपादेयज्ञान, ततोऽत्र (अव्य०) फिर भी यहां (जयो० १/६७)
'तत्त्वबुद्धिस्तद्दधी: कुतः स्याद्यदि चित्तशुद्धिः शुद्धेश्च किं तति (स्त्री०) [तन्+क्तिन्] पंक्ति, सन्तति, परम्परा, श्रेणी, जिनवाक्यप्रयोगः। (वीरो० ५/३१)
रेखा। 'सतां ततिः स्याच्छरदुक्तरीतिः' (सुद० १/८) | तत्त्ववर्त्मन् (पुं०) तत्त्वमार्ग, सन्मार्ग, यथार्थ पथ, वास्तविक 'गुणयुक्ता वचस्ततिः' (सुद०८८)
पथ, धर्मज्ञानमार्ग। (जयो० २/१२) 'तत्त्वस्य वर्त्म तस्मात् तत्तत्सम्बन्धिन् (वि०) उसी से सम्बंधित। (सुद० ४/११)
सन्मार्गः तत्त्ववर्त्मनिरता यतः सुचित्प्रशस्तरेषु' (जयो० २/१२) तत्त्वं (नपुं०) [तत्त्व ] १. वास्तविक स्थिति, यथार्थ दशा, | तत्त्ववेणी (वि०) तत्त्वज्ञानी। (वीरो० १६/८)
समीचीन अवस्था। 'तदुदन्त्वेनाहं नेदं तत्त्वेन' (जयो० तत्त्वविद् (वि०) तत्त्वज्ञाता, आत्मज्ञाता, ब्रह्मवेत्ता। १६/७२)
तत्त्वस्थितिः (स्त्री०) तत्त्व का वर्णन। (जयो० २८/४०) ० उचित, उपयुक्त-'इदं ते तत्त्वमुचितं नास्ति' (जयो० तत्त्वानां जीवादीनां स्थिति।
५/३७) वेत्सि देवि पद मर्हसि तत्त्वं मौलमत्र नहि ते | तत्त्वातिगत (वि०) तत्त्व से रहित, आत्मज्ञान से विमुख। खलु तत्त्वम्। (जयो० ५/३७)
(समु० ९/१४) ० स्वभाव, प्रकृति-'किसलयस्य तत्त्वं स्वभावम्' (जयो० तत्त्वाधिगम् (वि०) तत्त्व की जानकारी। वृ०५/४२)
तत्त्वाधिगमार्थ (वि०) वस्तु परिज्ञानार्थ। (जयो० २६/७२) वास्तव- (सुद० १०२)
तत्त्वानुशीलन (नपुं०) तत्त्व चिन्तन। तात्त्विक दृटि- जीवो कृति न हि कदाप्युपयाति तत्त्वानुसूक्ष्मः (पुं०) तत्त्व के अनुरूप। तत्त्वात्। (सुद० १२९)
तत्त्वाभिनिवेश: (पुं०) तत्त्वज्ञान, यथार्थबोध। ० तत् तत् स्वभाव वाला।
तत्त्वार्थः (पुं०) यथार्थ, सत्यार्थ, वास्तविक। (सम्य० ७२) ० सदसदात्मक
पश्यन्नपि न भूभागे तत्त्वार्थं प्रतिपद्यते। (सुद० १२८) ० प्रमाणसिद्ध स्वभाव रूप
० जो पदार्थ जिस रूप में अवस्थित हो, उसी रूप का ० स्व-पर-उपकारी
निश्चय। 'तत्त्वेनार्यत इति तत्त्वार्थ:। अर्यते गम्यते बहुनयविधायी
ज्ञायते इत्यर्थः। तत्त्वेनार्थ: तत्त्वार्थः। (स०वा० १/२) द्रव्य-पर्यायात्मक
स्वरूप बोध। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्त वस्तु रूप तदिति विधिः, ० स्वभावगत ज्ञान। तस्य भावस्तत्त्वम्' तत्त्वं श्रुतज्ञान।
० जीवादि पदार्थ का यथास्वरूप का प्रतिबोध। याथात्म्य रूप
० प्रमाणगत अवबोध। ० हेयोपादेयज्ञान
० नय जन्य ज्ञान। ० वस्तु स्वरूप। तत्त्वानि जैनाऽऽगमवाद्विभर्ति क्षेत्राणि | तत्त्वार्थनामः (पुं०) तत्त्वार्थसूत्र नाम। (सुद० वृ० ८३) सप्तायमिहाग्रवर्ती। (वीरो० २/५)
तत्त्वार्थप्रतीतिः (स्त्री०) तत्त्वज्ञान के अर्थ की जानकारी, तत्त्वत: (अव्य०) वस्तुतः, ठीक ठाक।
तत्त्वार्थ बोध। तत्त्वअर्थः (पुं०) पदार्थ विवेचन। (सम्य० ८२)
तत्त्वार्थबोधः (पुं०) तत्त्वार्थ का ज्ञान। तत्त्वज्ञ (वि०) वस्तुतत्त्ववेदी, वस्तु तत्त्व का जानने वाला। तत्त्वार्थ भावः (पुं०) तत्त्वज्ञान का स्वभाव। तत्त्वज्ञानं (नपुं०) तत्त्व अभिनिवेश, जीवादि तत्त्वों की प्रतीति तत्त्वार्थमतिः (स्त्री०) तत्त्व के अर्थ प्रति बुद्धि। याथात्म बोध।
तत्त्वार्थभाष्यः (पुं०) ग्रन्थ नाम। देवागमस्तोत्र, (जयो० ३/६९) तत्त्वचिन्ता (स्त्री०) यथार्थ स्वरूप का चिन्तन। (वीरो० १६/७७) | तत्त्वार्थराजवर्तिकः (पुं०) अकलंक देव द्वारा रचित तत्त्वार्थमूत्र तत्त्वनिर्णिनीषु (वि०) तत्त्व की प्रतिस्थापना करने वाला।
पर महावृत्ति।
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