Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्त्वार्थसूत्रं ४३० तद्धितः तत्त्वार्थसूत्रं (नपुं०) आचार्य उमास्वामी की सूत्रगत एक तथात्वं (नपुं०) [तथा+त्व] ऐसी अवस्था, ऐसा होना। प्रसिद्ध रचना, जिसमें दश-अध्याय हैं। तथा तथा (अव्य०) उस, उस रीति से। (सुद० १०१) तत्त्वार्थसारः (पुं०) ग्रन्थ नाम। तथापि (अव्य०) तो भी, तब भी, फिर भी, उसी प्रकार भी। तत्त्वार्थ-सार्थानुभव: (पुं०) तत्त्वार्थ के समुदाय का ज्ञान, (समु० ३/७) (सुद० ११८) तत्त्वार्थ का वर्णन। तत्त्वानां जीवादीनां सार्थः समुदायस्तस्या तथापुनः (अव्य०) फिर भी (जयो० १/२६) तात्पर्य अर्थ में। तत्त्वार्थाधिगमः (पुं०) यथावस्थित पदार्थ का ज्ञान। तत्त्वं तथारूप: (पुं०) तद रूप, उसी रूप। अविपरीतोऽर्थः सुख-दुःख हेतुः, अधिगम्यते अनेनास्मिन्निति तथामतः (पुं०) उसी प्रकार का सिद्धान्त, यथार्थ सिद्धान्त। तत्त्वार्थाभिगमः'। तथाविध (अव्य०) इस प्रकार, इस रीति से। (दयो० ९७) तत्त्वार्थाभिमुखः (पुं०) तत्त्व ज्ञान के प्रति तत्पर, ज्ञानी, | तथैव (अव्य०) तो भी, उसी प्रकार से भी, वैसी भी। (जयो० सम्यकदृष्टि-'तत्त्वार्थस्याभिमुखो ज्ञानी सम्यग्दृष्टिराहतो २४/१०, समु० २/३३) (तो भी जयो० १/५, १/४) महाशयः' (जयो० वृ० १०८३) तथ्य (वि०) [तथा यत्] यथार्थ, वास्तविक, सत्यार्थ। तत्त्वावबोधः (पुं०) पदार्थ के स्वरूप का परिज्ञान। तथ्यं (नपुं०) सत्य, यथार्थ। तत्त्वावलोचिक (वि०) यथार्थ ज्ञान कराने वाला, यथार्थ तथाप्येनं (अव्य०) वैसा ही (वीरो० १०/५) संवेदनकारिणी। (जयो० ११/६६) तथाभिराम (वि०) वैसा ही, तादृशीम् (जयो० २२/७२) तत्त्वोक्त (वि.) तत्त्व का कथन करने वाला। (जयो० ३/१७) तथोत्तर (वि०) अधिकाधिक। (जयो० तत्र (अव्य०) [तत्+त्रल] वहां, उस स्थान पर, सामने उस तद् (सर्व०) वह। ओर (सुद० २४४५, सुद०४/२१) 'सत्यं यतस्तत्र समस्तु तद्गुणः (पुं०) तदाकार गुण, उसी प्रकार के गुण। (जयो० वस्तुः ' (वीरो० ५/३२) वृ० १४/११) तत्रत्य (वि०) [तत्र+त्यप्] उस स्थान पर उत्पन्न हुआ। तद्-गुणालङ्कारः (पुं०) तद्गुण रूप अलंकार-'कन्या सुन्दरी तत्रतत्र (अव्य०) बहुत से स्थानों पर। (जयो० १/८९) सती विलासादियुक्ता अधुनाऽतीव श्लाघनीयेत्यर्थः' (जयो० तत्रभवत् (वि०) आप जैसे महाशय, महानुभाव। वृ० ३/५८) तत्रस्थ (वि०) उस स्थान से बद्ध। तद्गुणोनामालंकारः (पुं०) तद्प अलंकार। (जयो० वृ० तत्रापि (अव्य०) तो भी, फिर भी, उस तरह से भी, वैसे भी, १४/११) वहां से भी। असा हसेन तत्रापि साहसेन तदाऽवदत्। तदग्रतः (वि०) उसके सामने, उसके आगे। 'छद्मना निजगादेदं (सुद०८५) वस्तुत्वेन ततोऽनुरागकरणं तत्रापि शर्माज्झितिः। वचनं च तदग्रत।' (मुनि० १७) तदनन्तरं (अव्य०) इसके बाद (जयो०१/२) (सुद० ७७) तत्रैव (अव्य०) वहां से ही, उसी प्रकार से ही (दयो० ७३) तदन्तः (पुं०) उपायान्तर, उसके बाद, उसके पश्चात्। तथा (अव्य०) १. वैसे, उस रीति से, वैसी थी। (सुद० १०१, तदन्तरं क्रियारूपं, यद्यन्योन्यसमाश्रयः। जयो० १/४१) उस प्रकार। २. ओर, या अथवा (जयो० तदन्तरेण त द्वित्तेस्तद्वितेश्च तदन्तरात्।। (हित०सं०१५) वृ० १/५) तो फिर (जयो० १/३) ३. सच, ठीक, उचित। तदूपः (पुं०) तदाकार, जिसकी अपेक्षा की जाती है वह अंशी (सुद० २/४९) तद्रूप है। (जयो० २६/८८) तथा च (अव्य०) और भी। (जयो० वृ० १/१७) तदर्थ (वि०) उसी प्रयोजन के लिए, (जयो० १/१४) इसका तथाकार: (पुं०) यथार्थ रूप। अर्थ उसी अभिप्राय के लिए (दयो०६०) तदर्थमेवेयमिहास्ति तथागतः (पुं०) बुद्ध। (दयो० ४, जयो० १४/२) दीक्षा न काचिदन्या प्रतिभाति भिक्षा। (वीरो०५/४) तथागत-समीरणा (स्त्री०) बुद्ध शिक्षा, बुद्ध प्रेरणा, बहुवचन। | तद्वत् (वि०) उसी प्रकार (सुद० ८९) उससे युक्त, जैसा कि (जयो० १४/२) उसको रखने वाला। तथागुणः (पुं०) गुण युक्त। तद्ध्वा (स्त्री०) मुक्ति मार्ग। (सम्य० ५) तथातु (अव्य०) जो कि। (सुद० १०१) तद्धितः (पुं०) तद्धित प्रकरण, धातु के आगे गुण और वृद्धि For Private and Personal Use Only

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