Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२७ तडित्वः तः (पुं०) तवर्ग का प्रथम वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त है। १. 'तस्य पालकस्य 'त' विश्व का पालक। (जयो० ७/२५) तकः (पुं०) माण्डपिक, वधू पक्ष के लोग। 'तैरेव तकैः माण्डपिकैः कन्यापक्षिलोकैर्धनैर्बुहुभिर्मधैः परा' (जयो० वृ० १२/१३३) प्रयत्नशील (जयो० १३/५८) २. शत्रु स्त्रियां-विपरीत लोग। व्यशेषयन् वा ०द्रतमीर्षमार्य तकाञ्छतत्वेन किलारिनार्यः। (जयो० १/२६) ३. दुःखी-'विरहाक्तानाम्' (जयो० १५/९) ० लोग, जन, मनुष्य (दयो० ५४) 'नहि तकैर्जितकैतवएव स' (जयो० ९/५४) 'दारकं समुपादाय प्रसन्नमनसा सकम्' (दयो० ५४) तक्र (नपुं०) [तक्। रक्] छांछ, मट्ठा, दधिविकार। (जयो० १६/९, जयो० २/१५३) तक्रतुल्यं (नपुं०) छांछ सदृश्य, छांछ का संयोग। दुग्धस्य धारेव किलाल्पमूल्यस्तत्रनुयोगो मम तक्रतुल्य। (जयो० २०/८४) तक्रनिकरः (पुं०) छांछ समूह। तक्रसंयोगः (पुं०) छांछ का संयोग। (जयो० २०/८४) तक्रविन्दुः (स्त्री०) तक्रनिकट, छांछ की बूंद। (जयो० २१/५५) तक्ष् (सक०) १. धीरना, काटना, छीलना, छिन्न-भिन्न करना, खण्ड करना। २. बनाना, रचना करना, निर्माण करना। ३. आविष्कार करना। तक्षकः (पुं०) [तक्ष्+ण्वुल्] १. बढ़ाई, सुनार, विश्वकर्मा, छेदक। (जयो० ६/१०४) २. सूत्रधार, वास्तुकार। तक्षणं (नपुं०) [तक्ष्+ल्युट्] छीलना, काटना, बनाना। तक्षन् (पुं०) [तक्ष् कनिन्] बढ़ई, सुनार, विश्वकर्मा। तगरः (पुं०) सुगन्धि लता। तङ्क (सक०) सहना, हंसना। तङ्कः (पुं०) [तक+घञ्] कष्टमय जीवन, भय, डर।। तङ्कन (नपुं०) [त +ल्युट] कष्टमय जीवन। तङ्ग (अक०) जाना, पहुंचना, फिरना, भ्रमण करना। तज्जन्मदात्री (वि०) जन्म देने वाली (जयो० ११/५४) तञ्च् (सक०) सिकोड़ना, संकुचित करना। तच्चेत् (अव्य०) तभी (सुद० ५/८) तटः (पुं०) [तट्+अच्] किनारा, कगार, प्रान्तवर्ती, कूल, उतार, ढलान, स्थल। (सुद० २/५) तटं (नपुं०) किनारा, कगार, मूल, प्रान्त। तटगत (वि०) किनारे को प्राप्त, स्थल को प्राप्त। तटगामिन् (वि०) किनारों की ओर गया। तटवर्तिन् (वि०) समीप रहने वाली। (जयो० २६/२४) तटसंस्थित (वि०) किनारे पर स्थित हुआ। (समु० २/१९) तटसान्द्रः (पुं०) वनप्रान्त, अरण्यभाग, वनस्थल। बहुपत्ररथं ययौ मुदा तटसान्द्रं भटसन्मणेस्तदा। (जयो० १३/७४) तटस्थ (वि०) १. तटवर्ती, किनारे को प्राप्त, कुलगत, स्थल गत। २. अलग स्थित, पृथक्गत। ३. उदासीन, पराया, निष्क्रिय। (जयो०२/२६) ४. एक-दूसरे के प्रति एक सा भाव। मध्यस्थ-'दिनानि अत्येति तटस्थ एव' (सुद० १११) ५. स्वेच्छानुकूल काष्ठं यदादाय सदा क्षिणोति हलं तटस्थो रथकृत् करोति। (जयो० २८/९०) तटस्थित (वि०) तट पर गया, किनारे को प्राप्त हुआ, उदासीन हुआ। 'तटस्थितानां वारि योषिताम्' (जयो० १४/५६) 'तटस्थितान् उदासीनान्'तटाकः (पुं०) [तट+आकन्] तडाग। (दयो० ४३) तटाकं (नपुं०) तालाब, सरोवर। (जयो० २१/८८) (जयो० १२/१४०) तटान्त (पुं०) [तटमस्त्यस्या इनि ङीष्] १. नदी, सरिता, (जयो० २१/८८) २. विभक्त, विभाजित, छटी हुई। तटिनीद्वयतो महीभृति, परिणामेन महीयसी सती' (समु० २/५) तटिनीतट (नपुं०) नदी तट, सरिता कुल। (जयो० २१/८८) तटी (स्त्री०) तलहैटी, प्रान्तवर्ती स्थल। 'समेखलाभ्युन्नतिमन्नितम्बा __ तटी' 'असौ महाभोगनियोगिनी गिरेस्तटी' (जयो० २४/३५) तड् (सक०) पीटना, ताड़न करना, मारना, आघात पहुंचाना, छिन्न-भिन्न करना, प्रहार करना। तडागः (पुं०) [तड+आग] तालाब, जलाशय, सरोवर, गहरा जोहड़। तडाघातः (पुं०) उच्च आघात, तीव्र प्रहार। तडित् (स्त्री०) [ताडयति अभ्रम्-तड+इति] १. विद्युत, बिजली, चपला। (जयो० १२/५६) (सुद० १/४३) २. चञ्चल, चपल। (जयो० ४/६२) तडित्व (वि०) [तडित्+मतुप, वत्वम्] बिजली वाला। तडित्वत् (वि०) विद्युत युक्त। तडित्वः (पुं०) जलधर, मेघ, बादल-अथैतदागोहतिनीति सत्त्वाच्छृणत्यशेषं तमसौ तडित्वान्। (वीरो० ४/१२) For Private and Personal Use Only

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