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तडित्वः
तः (पुं०) तवर्ग का प्रथम वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दन्त
है। १. 'तस्य पालकस्य 'त' विश्व का पालक। (जयो०
७/२५) तकः (पुं०) माण्डपिक, वधू पक्ष के लोग। 'तैरेव तकैः
माण्डपिकैः कन्यापक्षिलोकैर्धनैर्बुहुभिर्मधैः परा' (जयो० वृ० १२/१३३) प्रयत्नशील (जयो० १३/५८) २. शत्रु स्त्रियां-विपरीत लोग। व्यशेषयन् वा ०द्रतमीर्षमार्य तकाञ्छतत्वेन किलारिनार्यः। (जयो० १/२६) ३. दुःखी-'विरहाक्तानाम्' (जयो० १५/९) ० लोग, जन, मनुष्य (दयो० ५४) 'नहि तकैर्जितकैतवएव स' (जयो० ९/५४) 'दारकं समुपादाय प्रसन्नमनसा सकम्'
(दयो० ५४) तक्र (नपुं०) [तक्। रक्] छांछ, मट्ठा, दधिविकार।
(जयो० १६/९, जयो० २/१५३) तक्रतुल्यं (नपुं०) छांछ सदृश्य, छांछ का संयोग। दुग्धस्य
धारेव किलाल्पमूल्यस्तत्रनुयोगो मम तक्रतुल्य। (जयो०
२०/८४) तक्रनिकरः (पुं०) छांछ समूह। तक्रसंयोगः (पुं०) छांछ का संयोग। (जयो० २०/८४) तक्रविन्दुः (स्त्री०) तक्रनिकट, छांछ की बूंद। (जयो० २१/५५) तक्ष् (सक०) १. धीरना, काटना, छीलना, छिन्न-भिन्न करना,
खण्ड करना। २. बनाना, रचना करना, निर्माण करना। ३.
आविष्कार करना। तक्षकः (पुं०) [तक्ष्+ण्वुल्] १. बढ़ाई, सुनार, विश्वकर्मा,
छेदक। (जयो० ६/१०४) २. सूत्रधार, वास्तुकार। तक्षणं (नपुं०) [तक्ष्+ल्युट्] छीलना, काटना, बनाना। तक्षन् (पुं०) [तक्ष् कनिन्] बढ़ई, सुनार, विश्वकर्मा। तगरः (पुं०) सुगन्धि लता। तङ्क (सक०) सहना, हंसना। तङ्कः (पुं०) [तक+घञ्] कष्टमय जीवन, भय, डर।। तङ्कन (नपुं०) [त +ल्युट] कष्टमय जीवन। तङ्ग (अक०) जाना, पहुंचना, फिरना, भ्रमण करना। तज्जन्मदात्री (वि०) जन्म देने वाली (जयो० ११/५४) तञ्च् (सक०) सिकोड़ना, संकुचित करना। तच्चेत् (अव्य०) तभी (सुद० ५/८) तटः (पुं०) [तट्+अच्] किनारा, कगार, प्रान्तवर्ती, कूल,
उतार, ढलान, स्थल। (सुद० २/५)
तटं (नपुं०) किनारा, कगार, मूल, प्रान्त। तटगत (वि०) किनारे को प्राप्त, स्थल को प्राप्त। तटगामिन् (वि०) किनारों की ओर गया। तटवर्तिन् (वि०) समीप रहने वाली। (जयो० २६/२४) तटसंस्थित (वि०) किनारे पर स्थित हुआ। (समु० २/१९) तटसान्द्रः (पुं०) वनप्रान्त, अरण्यभाग, वनस्थल। बहुपत्ररथं
ययौ मुदा तटसान्द्रं भटसन्मणेस्तदा। (जयो० १३/७४) तटस्थ (वि०) १. तटवर्ती, किनारे को प्राप्त, कुलगत, स्थल
गत। २. अलग स्थित, पृथक्गत। ३. उदासीन, पराया, निष्क्रिय। (जयो०२/२६) ४. एक-दूसरे के प्रति एक सा भाव। मध्यस्थ-'दिनानि अत्येति तटस्थ एव' (सुद० १११) ५. स्वेच्छानुकूल काष्ठं यदादाय सदा क्षिणोति हलं तटस्थो
रथकृत् करोति। (जयो० २८/९०) तटस्थित (वि०) तट पर गया, किनारे को प्राप्त हुआ, उदासीन
हुआ। 'तटस्थितानां वारि योषिताम्' (जयो० १४/५६)
'तटस्थितान् उदासीनान्'तटाकः (पुं०) [तट+आकन्] तडाग। (दयो० ४३) तटाकं (नपुं०) तालाब, सरोवर। (जयो० २१/८८) (जयो०
१२/१४०) तटान्त (पुं०) [तटमस्त्यस्या इनि ङीष्] १. नदी, सरिता,
(जयो० २१/८८) २. विभक्त, विभाजित, छटी हुई। तटिनीद्वयतो महीभृति, परिणामेन महीयसी सती' (समु०
२/५)
तटिनीतट (नपुं०) नदी तट, सरिता कुल। (जयो० २१/८८) तटी (स्त्री०) तलहैटी, प्रान्तवर्ती स्थल। 'समेखलाभ्युन्नतिमन्नितम्बा
__ तटी' 'असौ महाभोगनियोगिनी गिरेस्तटी' (जयो० २४/३५) तड् (सक०) पीटना, ताड़न करना, मारना, आघात पहुंचाना,
छिन्न-भिन्न करना, प्रहार करना। तडागः (पुं०) [तड+आग] तालाब, जलाशय, सरोवर, गहरा
जोहड़। तडाघातः (पुं०) उच्च आघात, तीव्र प्रहार। तडित् (स्त्री०) [ताडयति अभ्रम्-तड+इति] १. विद्युत, बिजली,
चपला। (जयो० १२/५६) (सुद० १/४३) २. चञ्चल,
चपल। (जयो० ४/६२) तडित्व (वि०) [तडित्+मतुप, वत्वम्] बिजली वाला। तडित्वत् (वि०) विद्युत युक्त। तडित्वः (पुं०) जलधर, मेघ, बादल-अथैतदागोहतिनीति
सत्त्वाच्छृणत्यशेषं तमसौ तडित्वान्। (वीरो० ४/१२)
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