Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

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Page 344
________________ की है। सदानन्नद का वेदान्तसार' अद्वैत वेदान्त का प्रथम एवं प्रामाणिक सार ग्रन्थ है। सदानन्द के पूर्व भी अद्वैत वेदान्त में आचार्य 'पद्मपाद' ने एक वेदान्तसार लिखा था जो शंकराचार्य रचित आत्मबोध की एक टीका है। किन्तु इसमें अद्वैत वेदान्त का पूर्ण विवेचन नहीं था। इस दृष्टि से सदानन्द का वेदान्तसार अतिमहत्वपूर्ण है जिसमें अद्वैत वेदान्त के सभी विषय वर्णित है। वेदान्तसार की रचना १५२५ ई० में हुई थी। उनके शिष्य कृष्णानन्द थे और कृष्णानन्द के शिष्य नृसिंह सरस्वती थे जिन्होंने शकसंवत् १५१० में अर्थात् १५८८ ई में वेदान्तसार के ऊपर 'सुबोधिनी' नामक एक टीका लिखी। उन्होंने सुबोधिनी का रचनाकाल स्वयं बताया है जाते पञ्चशताधिके दशशते संवत्सराणां पुनः सञ्जाते दशवत्सरे प्रभुवर श्रीशालिवाहे शके । प्राप्ते दुर्मुखवत्सरे शुभशचौमासेऽनुमित्यां तिथौ प्राप्त भार्गववासरे नरहरिप्टीकां चकारोज्जवलाम् ।। सुबोधिनीकार नृसिंह सरस्वती नृसिंहाश्रम से भिन्न व्यक्ति है। सुबोधिनी के अतिरिक्त वेदान्तसार पर संस्कृत में दो और टीकाएं है। रामतीर्थ की विद्वनमनोरंजनी जिसकी रचना १६५०ई० के आस-पास हुई थी। और आपदेव द्वितीय की बालबोधिनी जिसकी रचना १७वीं शती के उत्तरार्द्ध में हुई थी। इन तीन टीकाओं में विद्वनमनोरंजनी सर्वोत्तम है। वेदान्तसार शङ्कराचार्य के शारीरक भाष्य का संक्षेप है। इस संक्षेप में सर्वज्ञात्ममुनि के संक्षेपशारीरक को प्रमुख महत्व दिया गया है। रामतीर्थ (१७वीं शताब्दी) रामतीर्थ का समय १७वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना गया है। रामतीर्थ ने 329

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