Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

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Page 350
________________ जीव ब्रह्म सम्बन्ध, जीव स्वरूप अविद्यानिवृत्ति आदि विषयों पर अद्वैत विरोधी मतों का युक्तियुक्त प्रत्याख्यान करके स्वसिद्धान्तों की स्पष्ट व्याख्या की है। शङ्करोत्तर अद्वैतवेदान्त के इन आचार्यों ने अपनी तर्कपूर्ण पैनी युक्तियों से एक ओर बौद्ध और न्याय के दार्शनिकों द्वारा लगाये गये आक्षेपो तथा आपत्तियों का प्रत्युत्तर प्रस्तुत किया तो दूसरी ओर विशिष्टाद्वैती रामानुज मध्वादि वैष्णव दार्शनिकों के द्वैतवाद से युक्त युक्तियों का भी तर्कतः निराकरण किया। आचार्य शङकर के बाद अद्वैत वेदान्त में कई प्रस्थानों का आविर्भाव हुआ जैसेविवरण प्रस्थान, भामती प्रस्थान, वार्तिक प्रस्थान आदि इन प्रस्थानों के अतिरिक्त बाध प्रस्थान का विकास हुआ जो नव्य अद्वैत वेदान्त को सुदृढ़ कर रहा है। इसके अतिरिक्त प्रारम्भिक प्रस्थान के ग्रन्थों एवं साहित्यों का भी अद्वैत वेदान्त के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। शङ्करोत्तर प्रमुख आचार्यो में शङ्कर के शारीरक भाष्य पर वाचस्पति मिश्र की प्रसिद्ध 'भामती टीका' के नाम से 'भामती प्रस्थान' प्रचलित हुआ और पद्मपाद की 'पंचपादिका' पर प्रकाशात्मयति का 'पंचपादिका विवरण-टीका' के नाम से 'विवरण प्रस्थान' ये दो प्रस्थान अद्वैत वेदान्त के प्रामाणिक सम्प्रदाय के रुप में प्रसिद्ध है। इसी प्रकार ब्रह्मसिद्धि की परम्परा से मण्डन-प्रस्थान के तृतीय प्रस्थान ‘वार्तिक प्रस्थान' का भी कम महत्व नहीं है। वार्तिक प्रस्थान का एक प्रधान ग्रन्थ सर्वाज्ञात्म मुनि रचित 'संक्षेप शारीरक' है। सर्वाज्ञात्म मुनि सुरेश्वराचार्य के प्रधान शिष्य थे। विवरण-टीका का गाम्भीर्य एवं महत्व सभी परवर्ती अद्वैतवादी स्वीकार करते है। इसको परवर्ती अद्वैताचार्यों ने अपनी व्याख्या के लिये मूलाधार के रूप में माना है। यहां तक कि परवर्ती आचार्यों के टीकाग्रन्थों में भी विवरण का उल्लेख किसी न किसी प्रकार से रहता ही है। इसमें सन्देह नहीं कि विवरण का गाम्भीर्य एवं उसकी 336

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