Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

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Page 359
________________ जायेगा।' विघारण्यस्वामी अविद्या का लक्षण 'असाधारण मानयोगाऽसहिष्णुत्व' को बताया है। चित्सुखाचार्य अज्ञान को अनादि, भावरूप विज्ञाननिरस्य अज्ञान बताया है। चित्सुखाचार्य यह भी कहते है कि अविद्या भावाभावविलक्षण ही है किन्तु उसे उपचार वश उसे भावरूप इसलिये कह दिया जाता है कि वह अभावरूप नहीं है। अज्ञान के सम्बन्ध में विमुक्तात्मा ने एक अति महत्वपूर्ण सिद्धान्त को जन्म दिया है। विमुक्तात्मा अज्ञान की अनेकरूपता को मानते है उनके अनुसार प्रत्येक विषय में उतने ही अज्ञान हो सकते है जितने रूपों में उस विषय का प्रत्यक्ष संभव होता है विमुक्तात्मा आगे यह भी कहते है कि किसी वस्तु के विषय में उत्पन्न हुआ अज्ञान यदि नष्ट हो जाता है तो इससे मूल अविद्या का उच्छेद नहीं होता, अपितु उसके अंश का ही उच्छेद होता है। संभवतः यही कारण है कि किसी एक वस्तु के विषय में उससे सम्बद्ध अनेक अज्ञान उत्पन्न होते है । यथा' रस्सी में किसी को सर्प का भान होता है तो किसी को दण्ड रूप में या किसी को धारा आदि रूपो में प्रतीत होती है। इस प्रकार विमुक्तात्मा अज्ञान की अनेकरूपता को मानते है । दृष्टिसृष्टिवाद दृष्टि सृष्टिवाद अद्वैतवाद का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है किन्तु इसका विरोधीमत सृष्टि दृष्टिवाद है जिसे विवरण प्रस्थान मानता है । दृष्टि सृष्टिवाद का सम्बन्ध भामती प्रस्थान से है और इसे वाचस्पति मिश्र एक मतवाद का दर्जा प्रदान किया । यद्यपि दृष्टि सृष्टिवाद का बीज गौड़पाद के आगमशास्त्र तथा योगवसिष्ठ में भी मिलता है। मण्डन मिश्र ने ब्रह्मसिद्धि में जीवाश्रित अविद्या के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया और मण्डन 'दुर्घटत्वम विद्याया भूषणं न तु दूषणम । कथंचिद् घटमानत्वेऽविद्यात्वं दुर्घत भवेत ।। इष्टसिद्धि १ / १४० विवरण प्रमेय संग्रह पृ० १७५ विचारामहत्व चाविद्याया अलकार एव ! अनादि भावरुप यद् विज्ञानेन विलीयते । तदज्ञानमिति प्राज्ञा लक्षण सप्रचक्षते । तत्वपदीपिका- पृ० ५० 345

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