Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

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Page 377
________________ अर्थात् "कानन में शृगाल रूपी शास्त्रों की आवाज केवल तभी तक सुनाई पड़ती है जब तक वेदान्त केशरी (आचार्य शङ्कर) का सिंहनाद नहीं होता" अर्थात् आचार्य शङ्कर के विचारों एवं तर्कों से अन्य सभी दार्शनिक तथा उनके सिद्धान्तों की दीवालें ढह जाती हैं। यही कारण है कि अनेक शताब्दियों से विद्वान इस दर्शन (वेदान्त) की ओर आकर्षित होते रहे हैं, और यह दर्शन अपने विरोधियों के आक्रमणों से अपनी रक्षा करता रहा है। आज तक जितने हिन्दू दर्शन हुए हैं। उन सब में वेदान्त दर्शन का स्थान सर्वोपरि रहा है। इस दर्शन की महत्ता का एक कारण यह भी रहा है कि श्रुतियों पर आधारित होने के कारण यह साधारण जनों को भी सरलता से ग्राह्य था अद्वैत वेदान्त आज भी धर्म या अध्यात्म के रूप में लोगों द्वारा अनुसरणीय है। अपनी ज्ञानमीमांसा और प्रमाण मीमांसा की दृष्टि से भी अद्वैतवेदान्त सभी अन्य दर्शनों से अतिविशिष्ट है। दर्शन के रूप में शाङ्कर अद्वैत की एक बड़ी विशेषता यह है कि वह दो-तीन मौलिक मान्यताओं के आधार पर ज्ञान-मोक्ष आदि प्रत्ययों की बड़ी सुलझी हुई व्याख्या करता है। यद्यपि वेदान्त के सभी सम्प्रदाय उपनिषदों पर आधारित होने का दावा करते हैं। उनका इस प्रकार का दावा करना पूरी तरह से उचित हो या न हो इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनकी सामग्री का काफी बड़ा अंश उपनिषदों से लिया गया है। इसीलिए उपनिषद्, भगवद्गीता और वेदान्तसूत्र को प्रस्थानत्रयी अर्थात् वेदान्त का तीन स्तम्भ माना गया है। शङ्कर ने जिस विशेष प्रकार के एकतत्त्ववाद का प्रतिपादन किया वह बहुत प्राचीन है जो कि श्रुतियों, उपनिषदों आदि में पूर्व से ही वर्तमान था। किन्तु अद्वैत वेदान्त ने अन्त में जो रूप धारण किया उसको कहा जा सकता है कि वह स्वयं शङ्कर के विचारों की ही उपज थी। इनके सैद्धान्तिक पक्ष की प्रमुख विशेषता है कि 362

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