Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

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Page 376
________________ श्री शङ्कराचार्य युक्ति आदि तर्क से अपने शाङ्कर भाष्य में यह स्पष्ट करते हैं कि यदि जीव और ब्रह्म में भेद पारमार्थिक है तब तो अभेद किसी प्रकार से नहीं होगा। इस प्रकार प्रबल प्रमाणों से भेदाभेद का खण्डन करके अद्वैत वादी अभेद पक्ष को प्रतिपादित करते हैं। श्री भर्तृप्रपञ्च ब्रह्मदत्त, मण्डनमिश्र अविद्या से जीव ब्रह्म भेद मानते हैं। अर्थात् जीव ब्रह्म भेद पारमार्थिक नहीं है। केवल भेद अविद्या प्रतीत होता है। इस प्रकार अद्वैतवादी तथा ज्ञान कर्मे समुच्चय वादी थे। श्री भर्तृप्रपञ्च और ब्रह्मदत्त जीवन मुक्ति को नहीं मानते थे। इनके मत में देह पात के अनन्तर ही मुक्ति होती है। काशकृत्स्न, वादरि, द्रविड़, भर्तृहरि, गौड़पाद, और मण्डन मिश्र सभी आचार्य ब्रह्मा को निर्गुण और निर्विशेष मानते हैं। इस प्रकार सभी अद्वैतवादी आचार्यों के सिद्धान्त यथा अद्वैत, विवर्त जीव-ब्रह्म, एकता आदि समान रूप ही है केवल कहीं कुछ भेद है। शङ्कराचार्य के पश्चादवर्ती अद्वैतवादी आचार्यों में यथा- सुरेश्वराचार्य, पद्मपादाचार्य, प्रकाशात्मा, सर्वज्ञात्ममुनि, वाचस्पतिमिश्र आदि ने अद्वैतवाद के विकास में काफी योगदान दिया। शङ्कराचार्यके बाद कई प्रस्थानों का जन्म हुआ यथा भामती-प्रस्थान, वार्तिक प्रस्थान, विवरण-प्रस्थान और बाध प्रस्थान का जन्म हुआ। किन्तु सभी आचार्यों के मत-मतान्तरों में भले ही थोड़ी बहुत भिन्नता रही हो किन्तु इसका मूल उद्देश्य वेदान्त का अन्य दर्शनों से अलग विकास कर सर्वोच्च स्थान पर पहुँचाना था। अचार्य शङ्कर का दर्शन सभी भारतीय दर्शनों का शिरोमणि कहा जाता है। आचार्य शङ्कर के विचार केवल श्रुति सम्मत ही नहीं अपितु तों द्वारा भी पूर्ण प्रतिष्ठित है। उन्होनें अपनें तर्क बल के आधार पर ही प्रायः अन्य सभी भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों की कटु आलोचना भी की है, उनके विषय में कहा जाता है कि 'तावद् गर्जन्ति शास्त्राणि जम्बुका विपिने यथा। न गर्जन्ति महाशक्तिर्यावद् वेदान्त केशरी।। 361

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