Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

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Page 356
________________ है शब्द से अपरोक्ष ज्ञान होता है। यह मत शब्द परोक्षवाद है। ७. अविद्या एक है। ८. जीव एक है। एक जीववाद है। ६. ईश्वर एक है। वह बिम्बभूत है। १०. ईश्वर परम सत् है। ११. याग आदि कर्म ज्ञान के साधन संस्कृत मन से आत्मसाक्षात्कार होता है। शब्द से केवल परोक्ष ज्ञान होता है। ७. अविद्या अनेक है वह प्रतिजीव भिन्न है। ८. जीव अनेक है। नाना जीववाद है। ६. ईश्वर अनेक है। १०. ईश्वर कल्पित है 'मायिनं तु महेश्वरम्' (श्वेताश्वतर) ११. याग आदि कर्म विविदिषा के साधन है ज्ञान नहीं। १२. सन्यास में ज्ञान की अंगता अदृष्ट के द्वारा है। १३. सभी श्रुतियां प्रत्यक्ष से बलवान नहीं है किन्तु तात्पर्यवती श्रुति प्रत्यक्ष से बलवान् है जो अन्य श्रुतियां है वे अर्थवाद मात्र है। १४. दृष्टि- सृष्टिवाद द्वारा जगत की व्याख्या की जाती है। १५. निवृत्तकरण प्रक्रिया मान्य है इससे स्पष्ट है कि पञ्चीकरण नामक ग्रन्थ वाचस्पति के विवरण मत से आचार्य शङ्कर कृत नहीं है। अविद्या या माया १२. सन्यास में ज्ञान की अंगता दृष्ट द्वारा है। १३. तात्पर्यवती श्रुतियाँ भी प्रत्यक्ष से बलवान नही हैं उनका अर्थ लक्षणा द्वारा ही किया जाता है। १४. सृष्टिदृष्टिवाद द्वारा जगत् की व्याख्या की जाती है। १५. पंचीकरण प्रक्रिया मान्य है इस मत को वार्तिक प्रस्थान की भाँति विवरण प्रस्थान भी मानता है। माया, अविद्या, अज्ञान, अध्यास, आरोप, विवर्त, भ्रान्ति, भ्रम, सदसदनिर्वचनीयता 342

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