Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

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Page 355
________________ व्यसनितया रांचयामह, किन्तु ब्रह्म जिज्ञासा हतु भूतपूर्व प्रकृत सिद्धय। न तावत यस्य कस्याचिद् अत्र आनन्तर्यमिति वक्तव्यं, तस्य अभिधानमन्त रेणाऽपि प्राप्तत्वात ।' अर्थात् ब्रह्मजिज्ञासा जिसके अनन्तर उत्पन्न होने वाली कही जाती है उसके बिना भी संभव है उसका कोई नियतपूर्ववर्ती हेतु नहीं है, ऐसा वाचस्पति मानते है। परन्तु भाष्यकार उसके नियत पूर्ववर्ती हेतुओं को स्वाध्याय तथा साधनचतुष्टय के रूप में बताते है। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि वाचस्पति ने शङ्कराचार्य के मतों की समालोचना निष्पक्षता पूर्वक की है। वे अपनी आलोचनाओं के द्वारा ही अद्वैतवेदान्त का विकास करने में सफल हुये है। निःसन्देह वे एक महान् समीक्षक थे उनकी समीक्षा पद्धति अनुसन्धेय है। भामती प्रस्थान और विवरण प्रस्थान का तुलनात्मक अध्ययन भामती प्रस्थान और विवरण प्रस्थान कुछ बिन्दुओं को लेकर अपने अलग-अलग दृष्टिकोण रखते है। इन प्रस्थानों में, प्रायः तुलनात्मक दृष्टि से देखने पर मुख्य भेद दिखाई देते हैं- जो निम्न हैभामती प्रस्थान विवरण प्रस्थान १. श्रवण में कोई विधि नहीं है। १. श्रवण में नियम विधि है। २. जीवाश्रित अविद्या का विषय ब्रह्म २. ईश्वर जगत् का कारण है। जगत् का कारण है। ३. जीव ब्रह्म का अवच्छेद है। ३. जीव ईश्वर का प्रतिबिम्ब है। ४. अविद्या का आश्रय जीव तथा विषय ४. अविद्या का आश्रय और विषय ब्रह्म है। दोनों ब्रह्म है। ५. मन एक इन्द्रिय है। ५. मन इन्द्रिय नहीं है। ६. श्रवण-मनन और निदिध्यासन से ६. महावाक्य से आत्मसाक्षात्कार होता ' पं० बल्देव उपाध्याय- संस्कृत वाङ्गमय का वृहद इतिहास, दशमखण्ड वेदान्त- पृ० ६३ 341

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