Book Title: Bramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Author(s): Vandanadevi
Publisher: Ilahabad University

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Page 343
________________ ग्रन्थों की रचना किये थे। नारायणाश्रम ने अपने गुरु द्वारा रचित उपर्युक्त दोनों ग्रन्थों पर टीका ग्रन्थों की रचना किया। भेदधिक्कार पर इनका टीका ग्रन्थ भेदधिक्कार सक्रिया अत्यन्त प्रसिद्ध है इन्होंने अपने इस ग्रन्थ में द्वैत का निराकरण करके अद्वैत की प्रामाणिकता का समर्थन किये है। इसके अतिरिक्त 'भेदधिक्कार सत्क्रियोज्जवला नामक टीका भी इनके नाम से प्राप्त होती है। रंगरा ध्वरि (१६वीं शताब्दी) रंगराजध्वनि वेदान्त के प्रसिद्ध विद्वान अप्पय दीक्षित के पिता थे। इनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में अद्वैत विद्यामुकुर एवं विवरण दर्पण है। इन ग्रन्थों में रंगराजध्वरि ने न्याय वैशेषिक एवं सांख्य आदि मतों का खण्डन करके अद्वैत मत की स्थापना की है। सदाशिव ब्रम्हेन्द्र (१६वीं शताब्दी) सदाशिव ब्रम्हेन्द्र का समय १६वीं शताब्दी है। यह भी शांकर वेदान्त के पूर्ण समर्थक आचार्य रहे है। विरोधी अन्य मतों का निराकरण कर अद्वैतवाद का समर्थन किया है। इनकी मुख्य कृतियाँ अद्वैतविद्या विलास, बोधार्थात्मनिर्वेद, गुणरत्न मालिका और ब्रह्मकीर्तन तरंगिणी आदि है। जिसमें अद्वैतवाद को ही प्रतिपाद्य विषय बनाया गया है। १६वीं शताब्दी में ही नीलकण्ठ सूरि नामक आचार्य हुये जो अद्वैत वेदान्त के ही मुख्य रूप से थे। इन्होंने महाभारत पर 'भारत भावदीप' नामक टीका ग्रन्थ की रचना किये। गीता की व्याख्या करते समय यद्यपि कहीं-कहीं शांकर सिद्धान्त का विरोध भी किया है किन्तु ग्रन्थों को देखने पर स्पष्ट होता है कि इनका प्रमुख सिद्धान्त शांकर अद्वैत ही था। सदानन्द योगीन्द्र सरस्वती (१६वीं शताब्दी) सदानन्द ने अद्वैत वेदान्त के अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध ग्रन्थ वेदान्त सार की रचना 328

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