Book Title: Bikaner ke Darshaniya Jain Mandir Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Danmal Shankardan Nahta View full book textPage 3
________________ बीकानेर के दर्शनीय जैन-मंदिर बीकानेर राजस्थान का एक प्रधान अंग है जो पहले एक अलग राज्य के रूप में था। सं० १५४५ में जोधपुर के राठोड़ वंशी राव जोधानी के पुत्र राव बीकाजी ने इसे बसाया। इसके आस-पास का प्रदेश 'जोगल' के नाम से प्रसिद्ध था । क्रमशः राज्य सीमा बढ़ती गई और यहां के साहसी व्यापारियों की समृद्धि मी। राव बीकाजी के साथ प्रोसवाल जाति के कई व्यक्ति मी साथ आये थे और उनका राज्य के संचालन व व्यवस्था में बड़ा हाथ रहा। राव बीकाजी से महाराज रायसिंहजी तक सभी प्रधान मंत्री वच्छावत वंश के थे और पीछे मी सुराणों एवं वैदों आदि का राज्य की उन्नति में बड़ा हाथ रहा। इसलिए प्रोसवाल जाति के करीब ६० गोत्रों वाले डेढ़-दो हजार घर यहाँ रहे व हैं । मत्रीश्वर कर्मचंद वच्छवत ने. जातियों और गोत्रों के अलग-अलग मोहल्ले स्थापित किये जिनमें श्रोसवालों की २७ गवाड़े याने मोहल्ले हैं। प्रत्येक गोत्र वाला प्रायः अपनी गवाड़ में ही रहता है। ऐसी सुन्दर व्यवस्था अन्यत्र शायद कहीं नहीं है । बीकानेर राज्य यद्यपि जोधपुर आदि से छोटा था, पर यहाँ जैन ज्ञान मंडार और जैन मंदिर राजस्थान के अन्य सब नगरों से अधिक है। बीकानेर की यह विशेषता विशेष रूप से उल्लेखनीय है । जैन मंदिरों की अधिकता और उनके महत्वपूर्ण होने के कारण बीकानेर की गणना जैन तीर्थों में की गई है। कविवर समयसंबर ने अपनी तीर्थ माला में अन्य तीर्य स्थानों के साथ बीकानेर का भी विशिष्ट स्मरण व वंदन किया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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