Book Title: Bikaner ke Darshaniya Jain Mandir
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Danmal Shankardan Nahta

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Page 7
________________ वत मत्री कर्मसिंह ने सं० १५७० में इसे बनाया और १५६३ में इसकी प्रतिष्ठा हुई। यह मंदिर मी बड़ा विशाल, सुंदर और कलापूर्ण है। सामने तथा दूसरी श्रोर की फाटक के पास बगीचा होने से इसकी सुंदरता और भी बढ़ गई है। मूल मंदिर के बाहर की जैसलमेर के पत्थर की कोरणी और भीतरी प्रवेश द्वार श्रादि की बहुत बारीक और सुंदर कोरणी दर्शनीय है। ६ पार्श्वनाथजी-नाहटों की बगेची मांडासरजी के पास की नई सड़क व हमालों की बारी से गंगाशहर जाती हुई सड़क पर नाहटों की बगेची है। इसमें पार्श्वनाथ मगबान का मन्दिर और दादा गुरु कुशलमूरिजो के मकराने की बंगली में चरण हैं। इसके सामने बीकानेर के स्पापक राव बीकाजी का स्मारक है । ७ महावीरस्वामी का मंदिर (वैदों का) (श्राचारजों के चौक के पास) चिन्तामणिजी के मंदिर के बाद बना हुआ यह १४ गवाह पंचायनी जैन मंदिर है। सं० १५७ में इसकी नींव डाली गई । वैद गोत्र वालों ने इसे बनाया. इसलिये वैदों के महावीरजी के नाम से प्रसिद्ध है। इसको लेप्यमय मूलनायक सपरिकर प्रतिमा हुंदर है। सामने की ओर दो देहरियाँ हैं और पीछे की तीन देहरिया है जिनमें से प्रथम में सहस्रकणा पार्श्वनाथ जी की मूर्ति दर्शनीय है । मध्यवर्ती देहरी में गिरनार तीर्थ पट्ट और नेमि पंच कल्याणक पट्ट संगमरमर के है। इस मंदिर के सामने वो एक देहरी के भूमिगृह में ७५ धातु प्रतिमाएं पुरवित है। सामने को दूसरी देहरी में धातु की सबसे बड़ी चतुर्विशति मूर्ति है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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