Book Title: Bikaner ke Darshaniya Jain Mandir
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Danmal Shankardan Nahta

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Page 17
________________ है सुपार्श्वनाथ मन्दिर-ऊदासर यह बीकानेर से ६ मील दूर है। सं० १९३५ में सदारामजी गोलबा ने इस मंदिर को बनवाया। १० जिनकुशलसूरि गुरु मंदिर-नाल ___ यह बीकानेर से दक्षिण-पश्चिम ८ मील दूर गजनेर कोलायत जाने वाली सड़क पर है। यहां कुशलसूरिजी की पादुकाएँ बच्छावत कर्मसिंह ने सं० १५८० के आसपास, गुरु दर्शन पाने के अनन्तर स्थापित की । यह बहुत चमत्कारी स्थान माना जाता है। इस गुरु मंदिर का जीर्णोद्धार सं० १६६६ में भलंदानजी कोगरी ने बड़े ही सुन्दर रूप से करवाया है। गुरु चरण के ऊपर की जंगली की संगमरमर की जाली और कोरणी बहुत ही भव्य है। पाप के एक चौमुख स्तूप में महाकवि समय सुन्दरजी और उनके गुरु के चरण हैं । बाहर जिन चारित्रसूरिजी स्मृति मंदिर अभी दीपचदजी गोलका ने बनाया है, जिसमें जिनचारित्रसरिजी की मूर्ति है। सामने की शालाओं में कीतिरत्नसूरि शाखा वालों के चरण व स्तूप हैं। खरतर श्राचार्य शाखा की कोटड़ी में उनके श्रीपूज्य श्रादि के चरण हैं। काती मुदी १५ को यहां मेला लगता है और फागुन वदी ३० को पूजा, रात्रि जागरय श्रादि द्वारा गुरु भक्ति की जाती है । ११ पद्मप्रभुजी का मंदिर-नाल यह इस गुरु मन्दिर के अहाते ही में किनारे पर है। सं० १९१६ में इसकी प्रतिष्ठा हुई । १२ मुनिसुव्रतजी का मंदिर-नाल यह गुरु मंदिर के परकोटे से बाहर है । मूलनायक सं० १६.८ में प्रतिष्ठित है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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