________________
૧૧૭
ભારતીય દર્શનોમાં ઈશ્વર
. १. जिनेन्द्रो देवता यत्र रागद्वेषविवर्जितः।
हतमोहमहामल्लः केवलज्ञानदर्शनः ॥४५ सूरासूरेन्द्रसंपूज्यः सद्भूतार्थप्रकाशकः। षड्दर्शनसमुच्चय। अनन्तदर्शनज्ञानवीर्यानन्दमयात्मने। नमोऽर्हते कृपाक्लृप्तधर्मतीर्थाय तायिने ॥१ प्रमाणमीमांसा मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् । ..
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥१ सर्वार्थसिद्धि २. "So these four - infinite power, infinite apprehension, infinite
knowledge and infinite joy - are the features, attributed to God in every religion." Jaina Moral Doctrine. by H. S. Bhattacharya, Jaina Sahitya Vikas Mandala, Bombay, 1976, p. 3. "हरिभद्र यह मानने को अवश्य तैयार है कि 'ईश्वर' नाम उन महामानवों को दिया जा सकता है जिन्होंने मोक्ष की देहली पर पहुंच चुकने की अवस्था में ऐसे सत्शास्त्रों का प्रणयन किया है जिनकी शिक्षाओं का पालन करने के फलस्वरूप एक प्राणी के मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा उनका उल्लंघन करने के फलस्वरूप बंध की।" शास्त्रवार्तासमुच्चय
(हिन्दी अनुवाद सहित), प्रस्तावना, लालभाई दलपतभाई ग्रंथमाला, नं. २२, पृ. ९. ४. "As a matter of fact, some of the rational religions maintain
that man alone is the Crcator of his destiny and dispense with
the hypothesis of world-creator." Jaina Moral Doctrine, p. 2. ५. तत्र बौद्धमते तावद्देवता सुगतः किल ।
चतुर्णामार्यसत्यानां दुःखादिनां प्ररूपकः ।।४ षड्दर्शनसमुच्चय यः सर्वथा सर्वहतान्धकारः ___ संसारपङ्काज्जगदुज्जहार। तस्मै नमस्कृत्य यथार्थशास्त्रे
शास्त्रं प्रवक्ष्याम्यभिधर्मकोशम् ॥११॥ अभिधर्मकोश विमुक्तावरणक्लेशं दीमाखिलगुणश्रियं ।
स्वैकवेद्यात्मसम्पत्तिं नमस्यामि महामुनिम् ॥१॥ मनोरथनन्दिन्, प्रमाणवार्तिकटीका . 5. तत्र यः पुण्यसंभार: स भगवतां सम्यकसंबुद्धानां शतपुण्यलक्षणवतोऽद्भुताचिन्त्यस्य
नानारूपस्य रूपकायस्य हेतुः । मध्यमकावतारटीका, पृ. ६२-६३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org