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मोक्षमाळा-पुस्तक बाजु. २. ज्ञानना भेद केटला छे एनो विचार कहुं छं. ए ज्ञानना भेद अनंत छे. पण सामान्य द्रष्टि समजी शके एटला माटे सर्वज्ञ भगवाने मुख्य पांच भेद वह्या छे ते जेम छे तेम कहुं छु. प्रथम मति द्वितीय श्रुत, तृतीय अवध, चतुर्थ मनःपर्यव अने पांचमुं संपूर्ण स्वरुप केवळ. एना पाछा प्रतिभेद छे तेनी वळी अतींद्रिय स्वरुपे अनंत भंगजाळ छे.
३. शुं जाणवारुप छे ? एनो हवे विचार करीए. वस्तुनुं स्वरुप जाणवू तेनुं नाम ज्यारे ज्ञान; त्यारे वस्तुओ तो अनंत छे एने कयी पंक्तिथी जाणवी ? सर्वज्ञ थयः पछी सर्वदर्शिताथी ते सत्पुरुष, ते अनंत वस्तुनुं स्वरुप सर्व भेदे करीने जाणे छे अने देखे छे; परंतु तेओ ए सर्वज्ञ श्रेणिने पाम्या ते कयी कयी वस्तुने जाणवाथी ? अनंत श्रेणिओज्यांसुधी जाणी नथी त्यांसुधी कयी वस्तुने जाणता जाणता ते अनंत वस्तुओने अनंत रुपे जाणीए ? ए शंकानुं समाधान हवे करीए. जे अनंतवस्तुओ मानी ते अनंत भंगे करीने छे. परंतु मुख्य वस्तुत्व स्व रुपे तेनी बे श्रेणीओ छे. जीव अने अजीव. विशेष वस्तुत्व स्वरुपे नवतत्त्व किंवा षड्द्रव्यनी श्रेणिओ जाणवा रुप थइ पडे छे. जे पंक्तिए चढतां चढतां सर्व भावे जणाइ लोकालोक स्वरुप हस्तामलकवत् जाणी देखी शकाय छे. एटला माटे थइने जाणवारुप पदार्थ ते जीव अने अजीव छे ए जाणवा रुप मुख्य बे श्रेणिओ कहवाइ. शिक्षापाठ ८० ज्ञान संबंधी बेबोल भाग ४.
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४. एना उप भेद संक्षेपमां कहुं छु. ए चैतन्य लक्षणे एक रुप छे. देहस्वरुपे अने द्रव्य स्वरुपे अनंतानु अनंत छ. देहस्वरुपे तेना इंद्रियादिक जाणवा रुप छे तेनी गति, विगति इत्यादिक