Book Title: Balavbodh Mokshmala
Author(s): Mansukhlal Ravjibhai Mehta
Publisher: Mansukhlal Ravjibhai Mehta

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Page 185
________________ • विविध प्रश्नो भाग ५. -म. - सूक्ष्मताने माटे द्रष्टांत आपो जोइए ? उ.- द्रष्टांत देखीतुंज छे. पंचयामियो कंदमूळादिक अभक्ष्य खाय छे, सुखशय्यामां पोढे छे, विविध जातनां वाहनो अने पुष्पनो उपभोग ले छे, केवळ शीतळ जळथी तेओनो व्यवहार छे. रात्रिये भोजन ले छे. एम थतो असंख्याता जंतुनो विनाश, ब्रह्मचर्यनो भंग ए आदिनी सूक्ष्मता तेओना जाणवामां नथी. तेमज मांसादिक अभक्ष्य अने सुखशीलियां साधनोथी बौद्धमुनियो युक्त छे. जैन सुनियो तो केवळ एथी विरक्तज छे. शिक्षापाठ १०६ विविध प्रश्नो भाग ५. प्र. - वेद अने जैन दर्शनने प्रतिपक्षता खरी के ?. उ.- जैनने कंइ असमंजस भावे प्रतिपक्षता नथी; परंतु सत्यथी असत्य प्रतिपक्षी गणाय छे, तेम जैनदर्शनथीं वेदनो संबंध छे. प्र. - ए मां सत्यरूप तमे कोने कहोछो ? उ. - पवित्र जैनदर्शनने . प्र - वेददर्शनियो वेदने कहे छे तेनुं केम ? १४९ उ.- एतो मतभेद अने जैनना तिरस्कार माटे छे; परंतु न्यायपूर्वक बन्नेनां मूळतो आप जोइ जजो . म- आटलं तो मने लागे छे के महावीरादिक जिनेश्वरनुं कथन न्यायना कांटापर छे; परंतु जगत्कर्त्तानी तेओ ना कहे छे, अने जगत् अनादि अनंत छे एम कहे छे. ते विषे कंइ कंइ शंका थाय छे के आ असंख्यात द्वीपसमुद्रयुक्त, जगत् वगर बनाव्ये क्यांथी होय १ 1

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