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मोक्षमाळा-पुस्तक बीजुं. शिक्षापाठ ७८ज्ञान संबंधी बे बोल भाग २.
२ हवे ज्ञानप्राप्तिनां साधनो विषे कंइ विचार करीए. अपूर्ण पर्याप्तिवडे परिपूर्ण आत्मज्ञान साध्य थतुं नथी ए माटे थइने छ पर्याप्तियुक्त जे देह ते आत्मज्ञान साध्य करी शके. एवो देह ते एक मानवदेह छे. आ स्थळे प्रश्न उठशे के मानवदेह पामेला अनेक आत्माओ छे, तो ते सघळा आत्मज्ञान कां पामता नथी ? एना उत्तरमां आपणे मानी शकीडा के जेओ संपूर्ण आत्मज्ञानने पाम्या छे तेओनां पवित्र वचनामृतनी तेओने श्रुति नहीं होय. श्रुतिविना संस्कार नथी. जो संस्कार थी तो पछी श्रद्धा क्याथी होय ? अने ज्यां ए एक्के नथी त्यां नानप्राप्ति शानी होय ? ए माटे मानवदेहनी साथे सर्वज्ञवचनामृती प्राप्ति अने तेनी श्रद्धा ए पण साधनरुप छे. सर्वज्ञवचनामृत अकर्म भूमि के केवळ अनार्य भूमिमा मळतां नथी तो पछी मानवह शुं उपयोगनो ? एमाटेथइने सकर्म आर्यभूमि ए पण साधनरुप के . तत्वनी श्रद्धा उपजवा अने बोध थवा माटे निग्रंथ गुरुनी आवश्यकता छे. द्रव्ये करीने जे कुल मिथ्यात्वि छे, ते कुळमां थयेलो जन्म पण आत्मज्ञान प्राप्तिनी हानि रुपज छे. कारण धर्ममत भेद ए अति दुःखदायक छे. परंपराथी पूर्वजोए गृहण करेलु जे दर्शन तेमांज सत्यभावना बंधाय छे, एथी करीने पण आत्मज्ञान अटके छे. ए माटे भलं कुळ पण जरुरनुं छे. ए सघळां प्राप्त करवा माटे थ ने भाग्यशाळी थर्बु तेमां सद्पुण्य एटले पुण्यानुबंधी पुण्य इत्य दिक उत्तम साधनो छे. ए द्वितीय साधन भेद कह्यो.
३ जो साधन छे तो तेन अनुकुळ देश काळ छे ? ए त्रीजा भेदना विचार करीए. भारतमां महाविदेह इ० कर्म भूमि अने