Book Title: Balavbodh Mokshmala
Author(s): Mansukhlal Ravjibhai Mehta
Publisher: Mansukhlal Ravjibhai Mehta

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Page 161
________________ तत्त्वावबोध भाग ४. १२५ तत्वने पठनरुपे बेहजार पुरुषो पण मांड जाणता हशे, मनन अने विचारपूर्वक तो आंगळीने टेरवे गणी शकीए तेटला पुरुषो पण नहीं हशे . ज्यारे आवी पतित स्थिति तत्वज्ञान संबंधी थइ गइ छे त्यारेज मतमतांतर वधी पडया छे. एक लौकिक कथन छे के " सो शाणे एक मत तेम" अनेक तत्वविचारक पुरुषोना मतमां भिन्नता बहुधा आवती नथी. ए नवतत्व विचार संबंधी प्रत्येक मुनिओने मारी विज्ञप्ति छे विवेक ने गुरुगम्यताथी एनुं ज्ञान विशेष वृद्धिमान करवु एथी तेओनां पवित्र पंचमहाव्रत द्रढ थशे; जिनेश्वरनां वचनामृतना अनुपम आनंदनी प्रसादि मळशे; मुनित्व आचार पाळवामां सरळ थइ पडशे. ज्ञान अने क्रिया विशुद्ध रहेवाथी सम्यक्त्वनो उदय थशे; परिणामे भवांत थइ जशे . शिक्षापाठ ८५ तत्वावबोध भाग ४. जे जे श्रमणोपासक नवतत्व पठनरुप पण जाणता नथी तेओए ते अवश्य जाणवां. जाण्या पछी बहु मनन करवां. समजाय तेटला गंभिर आशय गुरुगम्यताथी सद्भावे करीने समजवा. एथी आत्मज्ञान उज्वळता पामशे, अने यमनियमादिकनुं बहु पालन थशे. नवतत्व एटले तेनुं एक सामान्यगुंथनयुक्त पुस्तक होय ते नहीं; परंतु जे जे स्थळे जे जे विचारो ज्ञानीओए प्रणीत कर्या छे, ते ते विचारो नवतत्वमांना अमुक एक बे के विशेष तत्वना होय छे. केवळी भगवाने ए श्रेणिओथी सकळ जगत्मंडळ दर्शावी दीधुं छे, एथी जेम जेम नयादि भेदथी ए तत्वज्ञान मळशे तेम तेम अपूर्व आनंद अने निर्मळतानी प्राप्ति थशे; मात्र विवेक, गुरुगम्यता अने

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