Book Title: Balavbodh Mokshmala
Author(s): Mansukhlal Ravjibhai Mehta
Publisher: Mansukhlal Ravjibhai Mehta

View full book text
Previous | Next

Page 169
________________ तत्त्वावबोध भाग १०. पछी तेओ तरफथी मनमानतो उत्तर मल्यो, अने एक बे वात जे कहेवानी होय ते सहर्ष कहो एम तेओए कहूं. __पछी में मारी वात संजीवन करी लब्धि संबंधी कह्यु, आप ए लब्धि संबंधी शंका करो के एने क्लेशरुप कहो तो ए वचनोने अन्याय मळे छे. एमां अति अति उज्वळ आत्मिक शक्ति गुरुगम्यता अने वैराग्य जोइए छीए. ज्यां सुधी तेम नथी, त्यां सुधी लब्धि विष शंका रहे खरी; पण हुं धारूं छु के आ वेळा ए संबंधी कहेला बे बोल निरर्थक नहीं जाय. ते ए के जेम आ योजना नास्ति अस्तिपर योजी जोइ, तेम एमां पण बहु सूक्ष्म विचार करवाना छे. देहे देहनी पृथक् पृथक् उत्पत्ति, च्यवन, विश्राम, गर्भाधान, पर्याप्ति, इंद्रिय, सत्ता, ज्ञान, संज्ञा आयुष्य विषय इ. अनेक कर्मप्रकृति प्रत्येक भेदे लेतां जे विचारो ए लब्धिथी नीकळे ते अपूर्व छे. ज्यां सुधी लक्ष पहोंचे त्यां सुधी सघळा विचार करे छे. परंतु द्रव्यार्थिक भावार्थिक नये आखी सृष्टिनुं ज्ञान ए त्रण शब्दोमा रहुं छे, तेनो विचार कोइज करे छे; ते सद्गुरु मुखनी पवित्र लब्धिरुपे ज्यारे आवे त्यारे द्वादशांगी ज्ञान शा माटे न थाय? जगत् एम कहेतांज मनुष्य एक घर, एक वास, एक गाम, एक शेहेर, एक देश, एक खंड एक पृथ्वि ए सघल्लं मूकी दइ असंख्यात द्वीप समुद्रादिथी भरपूर वस्तु केम समजी जाय छे ? एनुं कारण मात्र एटलुंज के ते ए शब्दनी बहोळताने समज्युं छे, किंवा एनुं लक्ष एवी अमुक बहोळताए पहोंच्यु छे; जेथी जगत् एम कहेता एवडो मोटो मर्म समजी शके छे तेमज ऋजु अने सरळ सत्पात्र शिष्यो निग्रंथ गुरुथी ए त्रण शब्दोनी गम्यता लइ द्वादशांगी ज्ञान पामता हता. आवी रीते ते लब्धि अल्पज्ञता छतां विवेके जोतां क्लेशरुप पण नथी..

Loading...

Page Navigation
1 ... 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188