Book Title: Balavbodh Mokshmala
Author(s): Mansukhlal Ravjibhai Mehta
Publisher: Mansukhlal Ravjibhai Mehta

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Page 179
________________ मनोनिग्रहन विघ्न. शिक्षापाठ १०० मनोनिग्रहनां विघ्न. १४३ वारंवार जे बोध करवामां आव्यो छे तेमांथी मुख्य तात्पर्य नीकले छे ते ए छे के आत्माने तारो अने तारवा माटे तत्त्वज्ञाननो प्रकाश करो; तथा सत्शीलने सेवो. ए प्राप्त करवा जे जे मार्ग दर्शाव्या ते ते मार्ग मनोनिग्रहाने आधीन छे मनोनिग्रहता थवा लक्षनी बहोळता करवी जरुरनी छे. ए बहोळतामां विनरुप नीचेना दोष छे. १ आळस. २ अनियमित उंघ. ३ विशेष आहार. ४ उन्माद प्रकृति. ५ मायाप्रपंच. ६ अनियमित काम. ७ अकरणीयविलास. ८ मान. ९ मर्यादाउपरांतकाम. ११ तुच्छवस्तुथी आनंद. १२ रसगारवलुब्धता. १३ अतिभोग. १४ पारर्कु अनिष्ट इच्छवं. १५ कारणविनानुं रळवुं. १६ झाझानो स्नेह. १७ अयोग्यस्थळे जवुं. १८ एके उत्तम नियम साध्य न करवो. १० आपवडाइ• ज्यां सुधी आ अष्टादश विघ्नथी मननो संबंध छे, त्यां सुधी अष्टादश पापस्थानक क्षय थवानां नथी. आ अष्टादश दोष जवाथी मनोनिग्रहता अने धारेली सिद्धि थइ शके छे. ए दोष ज्यांसुधी मनथी निकटता धरावे छे त्यां सुधी कोइपण मनुष्य आत्मसाथक करवानो नथी. अति भोगने स्थळे सामान्य भोग नहीं, पण केवळभोग त्यागवृत्त जेणे धर्यु छे, तेमज ए एक्के दोषनुं मूळ जेना हृदयमां नथी ते सत्पुरुष महभागी छे.

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