Book Title: Balavbodh Mokshmala
Author(s): Mansukhlal Ravjibhai Mehta
Publisher: Mansukhlal Ravjibhai Mehta

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Page 157
________________ पंचमकाळ. १२१ बीजने नामे शून्यता आवती जशे . नीच मंत्रियोनी महत्ता वधती जशे. एओ दीनप्रजाने चुसीने भंडार भरवानो राजाने उपदेश आपशे. शीयळभंग करवानो धर्म राजाने अंगीकार करावशे. शौर्यादिक सद्गुणोनो नाश करावशे. मृगयादिक पापमां अंध बनावशे. राज्याधिकारीओ पोताना अधिकारथी हजारगुणी अपदता राखशे. विप्रो लालचु अने लोभी थइ जशे . सद्विद्याने दाटी देशे संसारी साधनोने धर्म ठरावशे. वैश्यो मायावि, केवळ स्वार्थि अने कठोर हृदयना थता जशे समग्र मनुष्यवर्गनी सद्वृत्तियो घटती जशे . अकृत अने भयंकर कृत्यो करतां तेओनी वृत्ति अटक नहीं. विवेक, विनय, सरळता इ० सद्गुणो घटता जशे. अनुकंपाने नामे हीनता थशे. माता करतां पत्निमां प्रेम वधशे; पिता करतां पुत्रमां प्रेम वधशेः पातिवृत्त्य नियमपूर्वक पाळनारी सुंदरीओ घटी जशे स्नानथी पवित्रता गणाशे; धनथी उत्तमकूळ गणाशे. गुरुथी शिष्यो अवळा चालशे भूमिनो रस घटी जशे . संक्षेपमां कवानो भावार्थ के उत्तम वस्तुनी क्षीणता छे, अने कनिष्ठ वस्तुनो उदय छे. पंचमकाळनुं स्वरुप आमांनुं प्रत्यक्ष सूचवन पण केलं बधुं करे छे ! मनुष्य सद्धर्मतत्त्वमां परिपूर्ण श्रद्धावान नहीं थइ शके, संपूर्ण तत्त्वज्ञान नहीं पामी शके; जंबुस्वामीना निर्वाण पछी दश निर्वाणी वस्तु आ भरतक्षेत्रथी व्यवच्छेद गइ. पंचमकाळनुं आवुं स्वरुप जाणीने विवेकी पुरुषो तत्त्वने गृहण करशे, काळानुसार धर्मतत्त्वश्रद्धा पामीने उच्चगति साधी परिणामे मोक्ष साधशे. निग्रंथप्रवचन, निग्रंथ गुरु इ० धर्मतत्त्व पामवामां साधनो छे. एनी आराधनाथी कर्मनी विराधना छे.

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