Book Title: Atmanand Prakash Pustak 021 Ank 11 Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir dance +20..xox---xox... noovt. rxxr-oz...* ॥ वंदे वीरम् ॥ अपगतमले हि मनसि स्फटिकमणाविव रजनिकरग भस्तयो विशन्ति सुखमुपदेशगुणाः, गुरुवचनममलमपि सलिलमिव महदुपजनयति श्रवण स्थितं शूलमभव्यस्य । कादम्बरी. अंक ११ मो. पुस्तक २१] वीर संवत् २४५० ज्येष्ठ आत्म संवत् २८. प्रभाव पंचक - - - - - - - - - प्रभो ! महावीर ! अकाम आप थे, दयाद्रवीभूत सधाम आप थे। त्रिलोक-संसेवित पादपद्म थे, वितिर्गुणी हो गुणग्राम आप थे । सुचारु-प्राचार-शरीर आप थे, उदार-संचार-समीर आप थे । निकाम-कामप्रद भूमि-भानु थे, प्रभो ! महावीर ! सुधीर आप थे । विदग्ध-धी-धैर्य-गिरीशै आप थे, सदुक्ति-संमुक्ति महीश-आप थे ।। अजेय थे, गेय, विधेय, ध्येय थे, तमोऽपहारी जगदीश आप थे । ज्वलजगज्ज्वाल-असक्त आप थे, अधर्मि-उद्धारण-शक्त आप थे । असार-संसार-समुद्र-सेतु थे, अशेष-संत्यक्त विरक्त आप थे ॥ त्रिवर्गजित् सत्य निधान आप थे, समृद्धि सौभाग्य-निदान आप थे । अगोचर, प्रत्यय-प्रीति-मूर्ति थे, सुकर्म सद्धर्म-विधान आप थे । रामचरित उपाध्याय । For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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