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॥ वंदे वीरम् ॥ अपगतमले हि मनसि स्फटिकमणाविव रजनिकरग भस्तयो विशन्ति सुखमुपदेशगुणाः, गुरुवचनममलमपि सलिलमिव महदुपजनयति श्रवण स्थितं शूलमभव्यस्य ।
कादम्बरी.
अंक ११ मो.
पुस्तक २१] वीर संवत् २४५० ज्येष्ठ आत्म संवत् २८.
प्रभाव पंचक
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प्रभो ! महावीर ! अकाम आप थे, दयाद्रवीभूत सधाम आप थे। त्रिलोक-संसेवित पादपद्म थे, वितिर्गुणी हो गुणग्राम आप थे ।
सुचारु-प्राचार-शरीर आप थे, उदार-संचार-समीर आप थे । निकाम-कामप्रद भूमि-भानु थे, प्रभो ! महावीर ! सुधीर आप थे ।
विदग्ध-धी-धैर्य-गिरीशै आप थे, सदुक्ति-संमुक्ति महीश-आप थे ।। अजेय थे, गेय, विधेय, ध्येय थे, तमोऽपहारी जगदीश आप थे ।
ज्वलजगज्ज्वाल-असक्त आप थे, अधर्मि-उद्धारण-शक्त आप थे । असार-संसार-समुद्र-सेतु थे, अशेष-संत्यक्त विरक्त आप थे ॥ त्रिवर्गजित् सत्य निधान आप थे, समृद्धि सौभाग्य-निदान आप थे । अगोचर, प्रत्यय-प्रीति-मूर्ति थे, सुकर्म सद्धर्म-विधान आप थे ।
रामचरित उपाध्याय ।
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