Book Title: Atma Siddhi Author(s): Shrimad Rajchandra, J L Jaini Publisher: Shrimad Rajchandra AshramPage 25
________________ 686339 612 ATMA-SIDDHI roomwWoods Salutations with utmost devotion to those saintly personages who have given the precept, capable of annihilating birth, agedness, death & capable of effortless enplacement in one's (soul's) own self; even in always incessantly praising their spontaneous selfless compassion the inborn soul nature gets manifested. May the lotus-feet of all such saintly personages be ever enshrined in heart! जिसके वचन अंगीकार करनेपर, छह पदोंसे सिद्ध ऐसा आत्मस्वरूप सहजमें ही प्रगटित होता है, जिस आत्म-स्वरूपके प्रगट होनेसे सर्वकालमें जीव संपूर्ण आनंदको प्राप्त होकर निर्भय हो जाता है, उस वचनके कहनेवाले ऐसे सत्पुरुषके गुणोंकी व्याख्या करनेकी हममें असामर्थ्य ही है। क्योंकि जिसका कोई भी प्रत्युपकार नहीं हो सकता ऐसे परमात्मभावको, उनसे किसी भी इच्छाके बिना, केवल निष्कारण करुणासे ही प्रदाक किया है। तथा ऐसे होनेपर भी जिसने दूसरे जीवको ‘यह मेरा शिष्य है, अथवा मेरी भक्ति करनेवाला है, इसलिये मेरा है' इस तरह कभी भी नहीं देखा-ऐसे सत्पुरुषको अत्यंत भक्तिसे फिर फिरसे नमस्कार हो। That saintly personage, - on acceptance of whose words soul's own self-form as Headaki Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134