Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House Puna View full book textPage 3
________________ पड़ रहा है वह, यही संसार है; इसके पार और कुछ भी नहीं। लेकिन टूट-टूट जाती है यह बात, खेल बनता नहीं। खिलौने खिलौने ही रह जाते हैं, सत्य कभी बन नहीं पाते। धोखा हम बहुत देते हैं, लेकिन धोखा कभी सफल नहीं हो पाता। और शुभ है कि धोखा सफल नहीं होता। काश, धोखा सफल हो जाता तो हम सदा को भटक जाते! फिर तो बुद्धत्व का कोई उपाय न रह जाता। फिर तो समाधि की कोई संभावना न रह जाती। लाख उपाय करके भी टूट जाते हैं? इसलिए बड़ी चिंता पैदा होती है, बड़ा संताप होता है। मानते हो पत्नी मेरी है-और जानते हो भीतर से कि मेरी हो कैसे सकेगी? मानते हो बेटा मेरा है लेकिन जानते हो किसी तल पर, गहराई में कि सब मेरा-तेरा सपना है। तो झुठला लेते हो, समझा लेते हो, सांत्वना कर लेते हो, लेकिन भीतर उबलती रहती है आग। और भीतर एक बात तीर की तरह चुभी । रहती है कि न मुझे मेरा पता है, न मुझे औरों का पता है। इस अजनबी जगह घर बनाया कैसे जा सकता है? जिस व्यक्ति को यह बोध आने लगा कि यह जगह ही अजनबी है, यहां परिचय हो नहीं सकता, हम किसी और देश के वासी हैं, जैसे ही यह बोध जगने लगा और तुमने हिम्मत की, और तुमने यहां के भूल भुलावे में अपने को भटकाने के उपाय छोड़ दिए, और तुम जागने लगे पार के प्रति; वह जो दूसरा किनारा है, वह जो बहुत दूर कुहासे में छिपा किनारा है, उसकी पुकार तुम्हें सुनाई पड़नेलगी-तो तुम्हारे जीवन में रूपांतरण शुरू हो जाता है। धर्म ऐसी ही क्रांति का नाम है। ये खाडिया, यह उदासी, यहां न बांधो नाव। यह और देश है साथी, यहां न बांधो नाव। दगा करेंगे मनाजिर किनारे -दरिया के सफर ही में है भलाई, यहां न बाधो नाव। फलक गवाह कि जल-थल यहां है डावांडोल जमीं खिलाफ है भाई, यहां न बांधो नाव। यहां की आबोहवा में है और ही बू-बास यह सरजमीं है पराई, यहां न बांधो नाव। डुबो न दें हमें ये गीत कुनै–साहिल के जो दे रहे हैं सुनाई, यहां न बांधो नाव।Page Navigation
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