Book Title: Ashtakprakaranam Author(s): Haribhadrasuri, Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 5
________________ प्रकाशकीय जैन साहित्य के क्षेत्र में आचार्य हरिभद्र का अवदान महत्त्वपूर्ण है। आचार्य के उपलब्ध ग्रन्थों के अध्ययन एवं अनुवाद का भी सराहनीय प्रयास हुआ है। उनकी अधिकांश कृतियों का गुजराती में अनुवाद हुआ है। हरिभद्र की कृतियों का अनुवाद उपलब्ध कराने की दृष्टि से पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने उनके ग्रन्थों का अनुवाद सहित प्रकाशन की योजना बनाई है। इस क्रम में प्राकृत ग्रन्थ 'पञ्चाशक-प्रकरणम्' का डॉ. दीनानाथ शर्मा कृत हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है और संस्कृत कृति अष्टकप्रकरणम् को हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित कर रहे हैं। अष्टकप्रकरणम् आठ-आठ श्लोक के बत्तीस गच्छकों का संग्रह है। इसमें जैन आचार एवं दर्शन सम्बन्धी मान्यताओं के सम्बन्ध में परमतवादियों की आपत्तियों का खण्डन और जैन मान्यताओं का आगमसम्मत मण्डन किया गया है। इस कृति का हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद एवं रोमन-ट्रान्सलिट्रेशन विद्यापीठ के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ० अशोक कुमार सिंह ने किया है। इस अनुवाद में जिनेश्वरसूरि कृत अष्टकप्रकरण की संस्कृत वृत्ति का आश्रय लिया गया है। इसकी हिन्दी-अंग्रेजी भूमिका भी डॉ० अशोक कुमार सिंह ने ही लिखी है, अत: हम उन्हें साधुवाद देते हैं। प्रो० सागरमल जैन जो हमारी अकादमिक गतिविधियों के प्रेरणास्रोत हैं, उन्होंने अनुवाद का संशोधन भी किया है, एतदर्थ हम उनके आभारी हैं। प्रकाशन सम्बन्धी कार्यों में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के ही प्रवक्ता डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय एवं डॉ० विजय कुमार जैन का अपेक्षित सहयोग हमें प्राप्त हुआ है, अतः हम उनके भी आभारी हैं। ___ अन्त में हम सुन्दर अक्षर-सज्जा के लिये नया संसार प्रेस, भदैनी, वाराणसी एवं मुद्रण के लिये वर्द्धमान मुद्रणालय, वाराणसी के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। डी० आर० मेहता मन्त्री प्राकृत भारती अकादमी जयपुर भूपेन्द्र नाथ जैन मन्त्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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