Book Title: Appa so Parmappa
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 6
________________ - आदिवचन एक पुरानी कहानी है कि किसी जंगल में एक शेरनी, शिशु को जन्म देकर तुरन्त मर गई । सिंह का बच्चा पड़ा था कि एक गड़रिये ने उसे पाल लिया । अपनी भेड़-बकरियों के साथ ही वह उसे रखता, खिलातापिलाता । इस कारण सिंह - शिशु भी भेड़-बकरी की तरह सब आदतें सीख गया । गड़रिया भी उस सिंह - शावक को रस्सी से बाँध लेता, लकड़ी से हाँकता | एक दिन जंगल में दूर सिंह की गम्भीर गर्जना हुई । सिंह की गर्जना सुनते ही भेड़-बकरियों का झुंड उल्टे पाँव दौड़ने लगा, उनके साथ ही सिंह - शिशु भी भागता जा रहा था, उधर से सिंह आ गया। उसने भेड़ों के झुंड के साथ सिंह- शिशु को भागते देखा, तो सामने आकर खूब जोर से दहाड़ा, उसकी दहाड़ सुनकर सिंह- शिशु भी दहाड़ने लगा । यह देख गड़रिया भी डर कर भाग खड़ा हुआ। इधर सिंह शिशु एक सरोवर पर आकर पानी पीने लगा । पानी में अपनी परछाईं देखी, तो उसे सामने खड़े सिंह की छवि जैसी ही अपनी छवि लगी । वह सोचने लगा- 'अरे, सामने खड़ा जो यह सिंह गर्जना कर रहा है, यह तो मेरे जैसा ही है, मुझमें और इसमें कोई अन्तर नहीं है, फिर मैं इससे डरता क्यों हूँ ? उसने पुनः सिंह जैसी गर्जना की। अब तो उसे पक्का विश्वास हो गया कि मैं भेड़-बकरी नहीं, मैं तो सिंह हूँ, और मैं भी इसी प्रकार गर्जना कर सकता हूँ । जंगल में अकेला निर्भय विचर सकता हूँ । मुझे किसी से डर नहीं आत्मविज्ञानी विद्वानों ने इस उदाहरण द्वारा यह बताया है, आत्मा सिंह - शिशु की तरह आत्म-बोध-शून्य होकर स्वयं को भेड़-बकरी की भाँति दीन-हीन समझता रहा है चूँकि यह अज्ञान - मोह आदि आवरण से ग्रस्त है, इसलिए स्वरूप का भान नहीं है, अपनी अनन्तशक्ति, अनन्तज्ञान और अनन्त आनन्दमय रूप को भीतर समाहित किए हुए भी यह उसकी सत्ता का अनुभव नहीं कर पा रहा है, इसलिए सच्चिदानन्दमय होकर भी विपद्कंद में क्रन्दन कर रहा है । Jain Education International ( ५ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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