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अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसी बात को ध्यान में रखकर 'अपभ्रंश रचना सौरभ' प्रकाशित की गई थी। उसी क्रम में 'अपभ्रंश काव्य सौरभ' तैयार की गई है। इसमें अपभ्रंश के विभिन्न ग्रन्थों से काव्यांशों का चयन किया गया है। उनके हिन्दी अनुवाद, व्याकरणिक विश्लेषण एवं शब्दार्थ प्रस्तुत किये गये हैं। परिशिष्ट-1 में कवि-परिचय लिखा गया है तथा परिशिष्ट-2 में काव्यांशों के प्रसंग दे दिये गए हैं। इस तरह से अपभ्रंश भाषा सीखने के साथ-साथ काव्यों का रसास्वादन किया जा सकेगा। आभार -
काव्यांशों एवं उनके व्याकरणिक विश्लेषण से सम्बन्धित पुस्तकों का प्रूफ-संशोधन का कार्य अत्यन्त कठिन होता है। किन्तु मुझे गर्व है कि अपभ्रंश के मेरे विद्यार्थी सुश्री प्रीति जैन, सुश्री सीमा बत्रा एवं सुश्री माया शर्मा ने, जिन्होंने अकादमी की 'अपभ्रंश डिप्लोमा परीक्षा उत्तीर्ण की है और जो अकादमी के प्रकाशन विभाग में कार्यरत हैं, इस कठिन कार्य को सहर्ष और रुचिपूर्वक सम्पन्न किया है, अतः मैं उनका आभारी हूँ। मैं सुश्री प्रीति जैन का विशेषरूप से आभारी हूँ जिन्होंने काव्यों के अनुवाद एवं व्याकरणिक विश्लेषण में महत्त्वपूर्ण सुझाव सुझाए।
मेरी धर्मपत्नी श्रीमती कमलादेवी सोगाणी ने इस पुस्तक को तैयार करने में जो सहयोग दिया है उसके लिए आभार व्यक्त करता हूँ।
इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए जैनविद्या संस्थान एवं समिति के पूर्व संयोजक श्री ज्ञानचन्द्र खिन्दूका ने जो व्यवस्था की उसके लिए मैं उनके प्रति आभार प्रकट करता हूँ।
कमलचन्द सोगाणी (सेवानिवृत्त प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र)
संयोजक अप्रभंश साहित्य अकादमी, जयपुर जैनविद्या संस्थान, श्री महावीरजी
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