Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 8
________________ सम्पादन समस्यामय पार्श्वनाथ स्तोत्र - सं. उपा. भुवनचन्द्र राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान - जोधपुरनी हस्तप्रत (क्र. २११९८) मांथी सम्पादित करीने आ स्तोत्र अहीं रजू कर्यु छे. पत्रोनी किनारीओ त्रुटित छे तेथी टीकाना केटलाक अक्षरो गया छे. मूळ स्तोत्र सुरक्षित छे. प्रति पञ्चपाठी छे. कर्तातथा टीकाकार- नाम प्रतिमां नथी. लिपिकार मुनिवरे पोतानी पट्टावली आपी छे. सम्भवतः ए ज परम्पराना विद्वान मुनिनी के आचार्यनी आ रचना होई शके. स्तोत्रनी विशेषता ए छे के दरेक श्लोकमां कोई ने कोई प्रसिद्ध श्लोकएक चरण जोड्युं छे. मोटा भागे जाणीती समस्यापूर्ति-पादपूर्तिनी ज पंक्तिओ वापरी छे. आम, आ स्तोत्र समस्यापूर्तिरूप रचना छे. जुदा ज सन्दर्भ अने विचित्र कल्पनावाळी पंक्तिओने समाववा माटे कविए कल्पनाने छूटो दोर आप्यो छे. स्तोत्रमा कर्तानी विद्वत्ता तथा साहित्यप्रेम उपसी आवे छे. __ स्तोत्र प्रभुभक्तिनुं माध्यम तो छ ज, साथे साथे विद्वान मुनि-कविओ माटे विद्याव्यासंग तथा साहित्यविनोदनुं के साहित्यशिक्षा, अनुकूळ साधन बनी रहेतुं हतुं. आ स्तोत्र ए प्रकारचं छे. श्रीपार्श्वनाथं तमहं स्तवीमि, त्रैलोक्यलोकम्पृणधामधाम । सामोदमुद्भासियदीयकीर्ति-रामामुखं चुम्बति कार्तिकेयः ॥१॥ टी० तं पावं, अहं स्तवीमि - स्तोष्ये । -- किं ? कार्तिकेयः कुमारः, यदीयकीर्तिरामामुखं - यस्य श्रीपार्श्वनाथस्येयं, यदीयकीतिरेव रामा - श्रीः, तस्याः मुखं चुम्बति - कीर्तिस्तवनं करोतीत्यर्थः । किम्भूतं मुखं? त्रैलोक्यलोकम्पृणधामधाम - त्रिजगल्लोकाना[मा]नन्दकरतेजोगृहम् । पुनः, समोदं - सहर्ष, पुनः उद्भासि - देदीप्यमानं । तैरश्चयोगेन विवेकसेक-मुक्तास्ति या सापि जिनावतंस! । विलोकिते कान्तिकलत्वदास्य-चन्द्रोदये नृत्यति चक्रवाकी ॥२॥Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 156