Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 15
________________ सप्टेम्बर २०१८ जगति हमिति तुह जि मम जीवनं तात ! तूं परमगुरु कम्ममलपावनं । कम्मरु विययरु जोडि करु वीनवउँ देहि मूं अलजया दंसणं अभिनवं ॥२०॥ इअ भुवणभूसण दलिअदूसण सव्वलक्खणमंडणो मद-मानगंजण मोहभंजण वामकामविहंडणो । सुररायरंजण नाण- दंसण - चरणगुणजयनायगो जिणनाह ! भवि भवि तात भव मे बोधिबीजह दायगो ॥ २१ ॥ ॥ इति सीमन्धरस्वामिस्तवः ॥छ । * (२) श्रीसीमन्धरस्वामिस्तोत्रम् केवलनाणसणाहं, विदेहवासंमि संठिअं धीरं । सुर-मणुअनमिअचलणं, सीमंधरसामिअं वंदे ॥१॥ जय सीमंधर सामिअ!, भविअमहाकुमुयबोहणमयंक ! | सुमरामि तं महास!, अहं ठिओ भारहे वासे ॥२॥ सीमंधरदेव ! तुमं, गामागर - पट्टणेसु विहरंतो । धम्मं कहेसि जेसिं, सहलं चिअ जीविअं तेसिं ॥३॥ किं भयवं ! मह कम्मं, समुट्ठिअं तारिसेहिं पावेहिं । जं न हु जाओ जम्मो, तुह पयमूले सयाकालं ॥४॥ चिंतामणिसारिच्छो, अहवा कप्पहुमु व्व सुहफलओ । अप्पुव्वकामधेणू, न हु न हु ताणं पि अहिअयरो ॥५॥ छज्जइ तुह सामित्तं, तिहुअणमज्झमि न उण अन्नस्स । जहा एरिसरिद्धी, न हु दीसइ सेसपुरिसस्स ॥६॥ कइआऽहं सामि ! तुमं, सिंहासणसंठिअं सपरिवारं । धम्मं वागरमाणं, पिच्छिस्सं निअयनयणेहिं ? ॥७॥ पुज्जंतु ते मणोरह, निच्वं जे हिअयसंठिआ मज्झ । पावइ रंको वि फलं, संपत्ते कप्परुक्खंमि ॥८॥ ५

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