Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 13
________________ सप्टेम्बर - २०१८ ३ सुजण-मण-नयण-आणंदसंपूरकं दुरितहरतार-तारकमणीनायकं । सयल जगजंतु-भवताप-पापापहं नमउ सीमंधरं चंदसोभावहं ॥६॥ सुरभवणि गयणि पायालि भूमंडले नयर-पुरि नीरनिहि-मेरुपव्वयकुले । देव-देवीगणा नारि-नर-किन्नरा तुम्ह जस नाह ! गायंति आदरपरा ॥७॥ नाणगुणि झाणगुणि चरणगुणि मोहिआ सार-उवसारसंभारसंसोहिआ। रयणि-दिणि हरिसवसि सुत्त-जागरमणा तात ! पई नाह ! झायंति तिहुअणजणा ॥८॥ सिद्धिकर-रिद्धिकर-बुद्धिकरसंकरा विसयविस-अमिअभर सामिसीमंधरा । पुव्वभवविहिअवरपुन्नचयपामिआ राखि हिव भूरिभव-भवण गोसामिआ ! ॥९॥ कम्मभर-भारसंभार-अइभग्गओ घणउँ फिरिऊण जिण ! पाय तुह लग्गओ । मज्झ हीणस्स दीणस्स सिवगामिआ करवि करुणारसं सार करि सामिआ ॥१०॥ कठिणतरघाइ तिरअत्तणे ताजि(तज्जि)ओ नरयगइ करुण विलवंत न हु लज्जिओ । मणुअगइ हीणघरि कम्मवसि पडिअओ लागि तुह चलणि आणंदि हिव चडिअओ ॥११॥ के वि तुह दंसणे देव ! सिवसाहगा के वि वाणी सुणी चरणि भवमोअगा। भरहखित्तंमि हउं झाणि छउं लग्गउं देहि आलंबणं नाह ! जइ जुग्गओ ॥१२॥

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