Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 11
________________ सप्टेम्बर - २०१८ श्रीसीमन्धरस्वामीनी स्तवनारूप ऋण प्राकृतभाषामय रचनाओ सं. - पं. कल्याणकीर्तिविजय प्राकृतभाषामां रचायेल आ त्रणे कृतिओ अत्यन्त भाववाही, मञ्जुल अने. प्राञ्जल छे. आ रचनाओमां एक तरफ प्रभुभक्तिथी छलकाता हैयानो उल्लास अनुभवायः छे, तो बीजी तरफ काव्यतत्त्वनी ऊर्मिओनो उछाळ पण परखाय छे. श्रीसीमन्धरस्वामिस्तव नामक प्रथम रचना २० मात्राना गेय छन्दमां रचायेली छे अने तेमां मुख्यत्वे महाराष्ट्री प्राकृत भाषा प्रयोजायेल छे, परन्तु केटलाक स्थळे अपभ्रंश भाषाना प्रयोगो पण देखाय छे. (जेमके जिम ४, राखि ९, करवि १०, करि १०, लागि ११, उं छउं लग्गउं १२, तीह जीह १३ वगेरे). आ रचनामां कुल २१ पद्यो छे अने ते दरेकमां कविए पोताना हृदयना उत्कट भावो साथे शब्दालङ्कारो, अर्थालङ्कारो वगेरे काव्यगुणोने पण छूटथी प्रयोज्या छे. श्रीसीमन्धरस्वामिस्तोत्र नामक बीजी रचना आर्या छन्दमां रचायेली छे अने तेमां पण २१ पद्यो ज छे. आ कृति महाराष्ट्री प्राकृतभाषामां रचायेली छे. अहीं पण कविए पोताना उत्कट भावोने मुख्यत्वे उपमा, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास वगेरे अर्थालङ्कारो साथे प्रयोज्या छे. आ स्तोत्रमा कविनी भावाभिव्यक्ति एटली प्रबळ छे के अनेक स्थळो महाकवि धनपाल विरचित ऋषभपञ्चाशिकाना भावोनु स्मरण करावे छे. त्रीजी कृति श्रीसीमन्धरस्वामिस्तुति छे. आ स्तुति शार्दूलविक्रीडित छन्दमां रचाई छे. तेमां प्रथम श्लोकमां सीमन्धरस्वामिनी स्तुति, बीजामा १७० जिनवरोनी स्तुति, त्रीजा श्लोकमां जिनेश्वर प्रणीत आगमनी स्तुति तथा चोथा श्लोकमां श्रुतदेवतानी स्तुति करवामां आवी छे. प्रतिपरिचय ___ कुल एक पानानी आ प्रति पूज्य गुरुभगवन्त श्रीविजयशीलचन्द्रसूरीश्वरजी म.ना अंगत संग्रहनी छे. पानानी आगली बाजुए १७ पङ्क्तिओ छे तथा पाछली बाजुए १८ पङ्क्तिओ छे. प्रत्येक पङ्क्तिमा ७०-७७ अक्षरो छे. प्रथम बे कृतिनी लेखनशैली पडिमात्रानी छे, प्राचीन लागे छे, ज्यारे त्रीजी कृतिनी शैली थोडी अर्वाचीन लागे छे. एथी एवं लागे छे के पहेला बे कृतिओ लखाई हशे अने त्रीजी कृति थोडां वर्षों पछी उमेराई हशे.

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