Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ 0 अनुसन्धान-७५(२) ____त्रणेय कृतिमां क्यांय रचनाकार के रचनासंवत्नो उल्लेख नथी तेम ज लेखनसंवत्नो पण उल्लेख नथी. मात्र लेखनशैली अवलोकतां तेनुं लेखन १६मी सदीना उत्तरार्धमां थयुं होय तेवू अनुमानी शकाय. अक्षरो सुन्दर छे तथा शुद्धि पण प्रायः सर्वत्र जळवाई छे. (१) श्रीसीमन्धरस्वामिस्तवः नमिरसुर-असुर-नरविंदवंदिअपयं रयणिकर-करनिकर-कित्तिभरपूरिअं । पंचसय-धणुह-परिमाण-परिमंडिअं थुणह भत्तीइ सीमंधरं सामिअं ॥१॥ मेरुगिरि-सिहरि धयबंधणं जो कुणइ गयणि तारा गणइ वेलुआकण मिणइ । चरमसायरजले लहरिमाला मिणइ सो वि न हु सामि ! तुह सव्वहा गुण थुणइ ॥२॥ तह वि जिणनाह ! निअजम्मसफलीकए विमलसुहझाणसंधाणसंसिद्धए। असुहदलकम्ममलपडलनिन्नासणं तात ! करवाणि तुह संथवं बहुगुणं ॥३॥ मोहभरबहुलजलपूरसंपूरिए विसयघणकम्मवणराजिसंराजिए। भवजलहिमज्झि निवडंतजंतूकए सामि सीमंधरो पोअ जिम सोहए ॥४॥ तेअभरभरिअदिसिविदिसिगयणंगणो पबलमिच्छत्ततमतिमिरविद्धंसणो। भविअजणकमलवणसंडबोहंकरो सामिसीमंधरो दिप्पए दिणयरो ॥५॥

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