Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान- ७५ (२)
निच्चं झामि अहं, तुह पयकमलं सुनिम्मलं धीरं । तह करि देव ! पसायं, जह दरिसायं ममं देसि ॥९॥ ते धन्ना कयपुन्ना, देवा देवी अ माणवा सव्वे | जे संसयवुच्छेअं, करंति तुह पायमूलंमि ॥१०॥ अहयं पुन्नविहूणो, ठाणे ठाणंमि संसयावडिओ | अच्छामि विसूरंतो, छउमत्थो नाणपरिहीणो ॥११॥ कुणसु पसायं गरुअं, वुच्छित्ती संसयाण जह होइ । जम्हा महाणुभावा, सरणागयवच्छला हुंति ॥ १२ ॥ कम्मवसेण य अहयं, भारहवासंमि जइ वि चिट्ठामि । तह वि तुमं मह हिअए, रयणायर - चंदनाएणं ॥ १३ ॥ तं पहु तं मज्झ गुरु, तं देवो बंधवो तुमं चेव । गुरुसंसारगयाणं, जीवाणं हुज्ज तं सरणं ॥१४॥ संसारजलहिमज्झे, निबुड्डुमाणेहिं भव्वसत्तेहिं । पइदिवसं समरिज्जइ, सीमंधरसामिपयकमलं ॥१५॥ जइ इच्छह परमपयं, निव्विन्ना तह य जम्म - मरणाणं । ता सुमरह जिणनाहं, विदेहवासंमि विहरंतं ॥ १६ ॥ जो निच्चं भव्वाणं, विदेहवासंमि सामि विहरंतो । सद्धम्मदेसणाए, मिच्छत्तपणासणं कुणइ ॥१७॥ पच्चूसे मज्झण्हे, संझासमयंमि सव्वकालंमि । सीमंधरतित्थयरं, वंदेहं परमभत्ती ॥१८॥ पंचधणुस्सयमाणो, चउरासीपुव्वलक्खवरिसाऊ । सो सीमंधरनाहो, अनंतनाणी सया जयउ ॥ १९ ॥ सुव्वय-नमितित्थयर-अंतरे रज्जलच्छिवच्छि (विच्छ)ड्डुं । छड्डिअ पवन्नदिक्खं, सीमंधरसामिअं वंदे ॥२०॥ इअ सीमंधरनाहो, थुओ मए भत्तिरायकलिएण । सासयसुहिक्कजणओ, नयनाहो होउ भविआणं ॥ २१ ॥
॥ इति सीमंधरस्वामिस्तोत्रम् ॥छा|
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