Book Title: Anusandhan 1994 00 SrNo 03
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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आदितीर्थसन्दर्शन शुचिदर्शन ए प्रकटितशिवकैलाश जय० ॥
युगलाधर्मनिवारक भवतारक ए भववारक भवनाश जय० ॥ २ ॥ केवलकमलानायक सुखदायक ए स्मरसायकहररूप जय० ॥ अङ्गलगितसमसाधन गतिबाधन ए स्थगितमहाभवकूप जय० ॥ ३ ॥
क्रोधकंसगरुडासन वृषभासन ए वृषलञ्छन जिनचन्द्र जय० ॥ अविकलकरुणासागर नतनागर ए दुरितविनाशवितन्द्र जय० ॥ ४ ॥
मायापञ्जरभञ्जन जनरञ्जन ए सहजनिरञ्जनमुद्र जय० ॥
कर्मजालशतशातन हतयातन ए
शोभासिन्धु- समुद्र जय० ॥ ५ ॥ इन्द्रैर्युगम हितक्रम बहुविक्रम ए गुणसंक्रम गुणपात्र जय० ॥ मोदितसकलसभाजन गुणभाजन ए सकलतीर्थमयगात्र जय० ॥ ६ ॥ विजितमोहभटसंगर शुचिसंगर ए भङ्गरहित हितशील जय० ॥ सुललितसिद्धिवधूवर वरसंवर ए प्रोल्लसदतिशयलील जय० ॥ ७ ॥ लीलालब्धि (ब्ध ? ) महोदय सुमहोदय ए
मोदय मामपि देव जय० ॥ कुरु वासं विशदे मम धृतसंवर ए
मनसि निरन्तरमेव जय० ॥ ८ ॥
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