Book Title: Anusandhan 1994 00 SrNo 03
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 22
________________ ट्रॅक नोंध १. त्रण मूल्यवान पद्यो वाचकमुख्य श्रीउमास्वाति महाराजनी ख्याति पूर्वधर तरीकेनी तथा संग्रहकार तरीकेनी छे. तेमणे रचेलं 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्र' जैनोना श्वेताम्बर अने दिगम्बर - दरेक संप्रदायमां समानरूपे मान्यताप्राप्त छे. श्रीहेमचन्द्राचार्ये पोताना व्याकरणमां 'उपोमास्वातिं संग्रहीतारः' (सि. २-२-३९) एम कहीने जैन सैद्धान्तिक विषयोना अनन्य संग्रहकार तरीके तेमनी प्रशस्ति करी छे. आ प्रशस्ति परंपरागत प्रघोष / मान्यता उपर ज मात्र आधारित हशे एम मानवा करतां, श्रीहेमचन्द्राचार्य समक्ष श्रीउमास्वाति - वाचकना, अत्यारे अनुपलब्ध एवा पण कोई ग्रंथो मोजूद हशे, तेम कल्पना करवामां विशेष औचित्य जणाय छे. जो के अत्यारे तो आपणी पासे 'तत्त्वार्थसूत्र' अने तेनी बे सम्बन्धकारिकाओ, ‘प्रशमरति प्रकरण', 'पूजाविधि प्रकरण' (संभवतः), आटली ज कृतिओ उपलब्ध छे. परंतु हमणां ज एक पुराणी - संभवतः १४मा सैकानी त्रुटक हस्तप्रति जोवा मली. आ प्रति कोई स्वाध्यायी मुनिनी टांचणपोथी जेवी जणाय छे. तेमां विविध ग्रंथोना पाठो नोंधेला छे. ते नोंधो जोतां जोतां नीचे जणावेलां बे पद्यो ते उमास्वातिकर्तृक होवाना स्पष्ट उल्लेख साथे जोवा मल्या. जे तेमनी उपलब्ध कृतिओमां क्यांय छे नहि. अने वळी संस्कृतमां छे. तेथी ज 'हेमचन्द्राचार्य समक्ष उमास्वातिना कोई ग्रंथो मोजूद हशे' तेवी कल्पना वजूदवाळी जणाय छे. हस्तप्रतिमाथी जडी आवेलां बे पद्यो आ प्रमाणे छः (१) "उक्तं उमास्वातिना रूप्यकच्चोलकस्थेन, विधिना मधुसर्पिषा । नेत्रोन्मीलनं(नक) कुर्यात् , सूरिः स्वर्णसि(श)लाकया ।।" "गव्यहव्यदधिदुग्धपूरितैः स्नापयन्ति कलशैरनुत्तमैः । ये जिनोक्तविधिना जिनोत्तमान् , स्वर्विमानविभवो भवन्ति ते ।। उमास्वातिवाचकस्य ।।'' आ बे पद्योमा पहेलु पद्य अंजनशलाका-प्राणप्रतिष्टानी क्रियाने लगतुं छे, तेथी उमास्वातिवाचके प्रतिष्ठाकल्पनी पण रचना करी हशे - तेवू अनुमान सहेजे करी शकाय छे. बीजु पद्य जिनपूजाने लगतुं छे. आ प्रतिष्ठाप्रसंगादि नैमित्तिक अथवा विशिष्ट जिनभक्तिना वर्णनप्रसंगमां निरूपाये- पद्य होई शके. जो तेम होय तो ते पद्य पण प्रतिष्ठाकल्पमा ज होवू जोइए. अथवा तो जिनपूजाने लगती कोई अन्य कृति पण तेमणे रची होय. तेओश्रीनी कोई कृति मळी आवे तो ज तथ्यातथ्यनो कदाच ख्याल आवे. पण ते अशक्यप्राय छे तेवा संयोगोमां, तेमना आ बे श्लोको मळी आव्या ते पण घणा हर्षनी वात छे. [21] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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