Book Title: Anusandhan 1994 00 SrNo 03
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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पाणीथी पण धोवानी प्रणालिका जूना समयमा हती. तेथी अहीं अभोखु एटले ‘सत्कार रूपे पाणी सिंचन' एवो अर्थ ज लेवो जोईए.
अन्य प्रयोगो आ प्रमाणे छ : लावण्यसमयकृत 'विमलप्रबंध' (संपा. धीरजलाल ध. शाह) -
सोवन करवी दीइ अभोखण, साजण हरखि भरिया. संपाद के 'आवकार' अर्थ आप्यो छे, पण 'सुवर्णनी झारीथी पाणी सींचे छे' एवो अर्थ स्पष्ट छे.
'लावण्यसमयनी लघु काव्यकृतिओ' (संपा. शिवलाल जेसलपुरा) - ____ मनि विण अभोखण दि घणां, वीरमती मेल्हइ बेसणां.
संपादके अभोखणर्नु मूळ सं. अम्भोष्ण मानी 'गरम पाणी' एवो अर्थ कर्यो छे. पण सत्कार रूपे सींचवामां आवता पाणीनो अर्थ स्पष्ट छे. बेसणां आपवानुं पछी आवे छे ते पण सूचक छे.
'आरामशोभा रासमाळा' मां -
संपुटि मिल्या बारि ए, आभोखइ आपउ वारि ए लग्न वेळाए वरने पोंखवामां आवे छे ते प्रसंगनो अहीं संदर्भ छे एटले संपादके अभोखइनो लीधेलो ‘सत्कार रूपे पाणी- सिंचन करवामां' ए अर्थ यथायोग्य छे. देहलकृत ‘अभिवनऊझणु' (संपा. शिवलाल जेसलपुरा)मां अंबोषण शब्द मळे छ :
राणी सुदर्शना दीधलां शृंगार रे, अंबोषण सहूनि मानिं हवा. संपादके अंबोषणनो 'कोगळा' अर्थ आप्यो छे, जे भाग्ये ज प्रस्तुत गणाय. प्रसंग महेमानोना स्वागतनो छे एटले अंबोषण ते अभोखणने स्थाने आवेलो होय एम लागे छे. 'बधांने मान रूपे पाणी- सिंचन करवामां आव्यु' एवो अर्थ लई शकाय छे.
अवोखण, अलबत्त, शामळकृत 'सिंहासनबत्रीशी' (संपा. हरिवल्लभ भायाणी)मां ‘अपोशण' एटले 'भोजन वेळाना आचमन'ना अर्थमां वपरायेलो मळे छे :
' अबोट अबोखण अति घणां, को भिक्षावश थाय.
ब्राह्मणना व्यवहारोना वर्णनमां आ आवे छे तेथी अबोट करवा, आचमन लेवू, भिक्षा मागवी वगेरेने ब्राह्मणना व्यवहारो तरीके समजी शकाय छे. आथी संपादके आपेलो 'अपोशण' अर्थ योग्य छे. पण 'अभिवन-ऊझj'मां अंबोषण ए अभोखणनो भ्रष्ट पाठ होवानी शक्यता ज बळवान छे.
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