Book Title: Anusandhan 1994 00 SrNo 03
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 36
________________ सत्ताथी) एवो अर्थ आप्यो छे. प्रसंग नेमिनाथना वरघोडानो छे. एमां ‘अधिकार के सत्ता'नो अर्थ प्रस्तुत जणातो नथी, केमके नेमिनाथ राजवी नथी, राजकुमार छे. एना करतां 'गौरव, महिमा' एवो अर्थ वधु प्रस्तुत बने तेवो छे. त्यां पण 'गौरवथी' नहीं पण ‘गौरव अर्थे' एम अन्वय वधु उचित लागे छ : 'नाथना गौरव के महिमाने अर्थे शरणाई वागे छे' वगेरे.. ज्ञानविमलसूरिकृत 'आनंदघन बावीसी पर बालावबोध' (संपा. कुमारपाल देसाई)मां पण अनुभाव शब्द मळे छ : भवोभवथी अभिनव ए द्रव्यथी अनुभावथी ते कहीइ छई. संपादके अनुभावनो 'कर्मनो विपाक' एवो अर्थ आप्यो छे, पण अहीं पाठनुं वाचन ज दोषयुक्त होय एवं लागे छे. स्तवननी जे पंक्तिनी समजूती तरीके आ वाक्य आवे छे ते पंक्ति आ प्रमाणे छ : __ भविभवि रे द्रव्य भावथी भाखीइ रे. जोई शकाय छे के मूळमां अनुभाव नथी, द्रव्य अने भाव छे, एटले विवरणना अनुभाव शब्दने अनु भाव तरीके वांचवो जोईए. अनु एटले 'अने' अनु आ अर्थमां मध्यकालीन साहित्यमां वारंवार वपरायो छे. जेमके, ‘गुर्जररासावली'मां – (१) पणमीउ सामीउ नेमिनाहु अनु अंबिकि माडी (२) सवे सलक्खण रूयवंत अनु कंचणवन्नि (३) सीसि चमर बंबाल अनु कठि कुसुमह माल. अप्रमाण गुर्जररासावली'मां आ शब्द आ रीते वपरायेलो मळे छ : तिणि खिण मेल्हिउं वणचरि बाणुं, ऊडिउं गयणि हूउं अप्रमाणु. ___ संपादकोए अप्रमाणनो अर्थ 'unknovable, invisible' (अज्ञेय, अदृश्य) एवो आप्यो छे. बाण आकाशमां गयुं तेथी अदृश्य थई गयु एम तेमणे घटाव्यु लागे छे. पण अप्रमाणनो आवो अर्थ लेवा माटे कोई आधार जणातो नथी. अप्रमाण एटले 'असिद्ध', अहीं 'निष्फळ, नकामुं': 'ते क्षणे वनचरे बाण छोड्यु. ते आकाशमां गयुं ने तेथी निष्फळ नीवड्यु.' 'आरामशोभा रासमाळा'मां पण आ शब्द वपरायेलो मळे छ : वहिली नावि तु तुं जाणि, मइ तुझ दीठउ अप्रमाण. संपादके अप्रमाणनो ‘असिद्ध' एवो अर्थ आप्यो छे. अहीं ‘असिद्ध' एटले 'अशक्य, असंभवित' : 'वहेली न आवे तो तने हुं जोई शकुं ते तुं अशक्य/असंभवित जाणजे (एटले के हुं - तुं मळी शकीशुं नहीं).' [35] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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