Book Title: Anusandhan 1994 00 SrNo 03
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 29
________________ राजाए ज्यारे जाण्युं के ए ब्राह्मणने त्यां रूपाळी कन्या छे, त्यारे तेणे तेनी मागणी करी. ब्राह्मणे कह्युं, 'महाराज, आपनुं मागुं हुं स्वीकारुं हुं. पण आपे जाते मारे त्यां पधारीने मारी पुत्रीनुं पाणिग्रहण करवुं'. राजाए मान्युं. ज्योतिषीए आपेला मुहूर्तने दिवसे विवाह माटे ते रवाना थयो, ने ए गाने ससराना घरे पहोंच्यो. कुळाचार प्रमाणे वरकन्यानी बच्चे अंतरपट देवायो. बनेनो खोबो 'युगंधरीलाजा' थी भर्यो. लग्ननुं मुहूर्त थतां ज्यारे अंतरपट खसेडाथो अने हस्तमेळा थाय ते पहेलां, जेवां वरकन्या एकबीजाने माथे लाजाना दाणा नाखवा लाग्यां, त्यां तो राजाए कन्याने रौद्र राक्षसीना रूपमा भाळी ! अने पेला लाजा कठोर कांकरा जेवा बनी राजाने माथे पटोपट टकरावा लाग्या कांईक भारे विकृति खडी थयानुं मानी भयभीत बनेलो राजा भाग्यो. पेली पथरानो वरसाद वरसावती पाछळ पडी. राजा नासतो नासतो पोतानी जन्मभूमि नागहूद पहोंच्यो, अने त्यां ज मृत्यु पाम्यो. अत्यारे पण एस्थाने गामना दरवाजानी बहार पीठजादेवीनुं देवळ छे. आमां लग्नविधिना भाग तरीके वरकन्यानो खोबो 'युगंधरीलाजा' थी भरवानो अने अंतरपट खसेड्या पछी परस्परना मस्तक पर लाजा नाखवानो निर्देश छे. आवो विधि गुजरातमा कोई ज्ञातिना विवाहविधिमा हाल प्रचलित छे के केम तेनी मने जाण नथी. हा, 'लाजाहोम' करवामां आवे छे खरो. 'लाजा' एटले तो शेकेला जव वगेरे धान्यना दाणा. 'युगंधरीलाज' उपरनी नोंधमा (सांडेसरा अने ठाकरना प्रबंधगत विशिष्ट शब्दोना कोशमां, पृ. ८६) युगंधरी कयुं अनाज ए स्पष्ट न होवानुं जणावी हिंदी जोन्हरी शब्द सरखामणी माटे आपेल छे. हिन्दीनी बोलीओमां जुंधरी, जुआरि, ज्वार एवां रूप पण मळे छे. आ धान्य ते आपणी जाणीती जुवार (के सौराष्ट्रनी वगेरे बोली ओमां जार जेम के जारबाजरी) ज छे. हेमचंद्राचार्ये 'देशीनाममाला' मां (३,५०) जोण्णलिया अने जोवारि आपेला ज छे. पासम. वगेरे कोशीए पण तेने आधारे ए शब्दो नोंध्या छे. युगंधरी ए हिंदी जुंधरी उपरथी घडी काढेलो संस्कृत शब्द छे. जैन लेखकोए आ रीते सेंकडो प्रादेशिक के प्राकृत शब्दोनुं मानमान्युं संस्कृत रूप घड़ी काढेल छे (लापशी - लपनश्री, पडसूंदी - पदशुद्धि:, डोकरो - डोलत्करः, दोहरो ( दोहडो) - दुग्धघटक वगेरे). प्राकृत जोन्नलिया उपरथी जोंधलिया अने पछी जुंधरी ए प्रमाणे विकास थयो छे. - हेमचंद्राचार्ये 'अभिधातचिन्तामणि' कोशमां जुवारना अर्थमां यवनाल, योनल, जोन्नाला, जूर्णा, देवधान्य अने बीजपुष्पिका एवा छ संस्कृत शब्द आप्या छे. मोनिअर-विलिअम्झना संस्कृत कोशमां पण संस्कृत कोशोने आधारे ते आपेल छे. त्यां यवनाल सुश्रुतमां मळतो होवानुं नोंध्युं छे. यवनाल उपरथी योनल, जोन्नला, जूर्णा वगेरे बन्या जणाय छे. ९. घडली, गूहली जैन परंपरामां पूजा, मुनिमहाराजनो स्वागतसत्कार वगेरे धार्मिक उत्सवना प्रसंगे, [28] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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